बेंगलूरु. वीवी पुरम स्थित संभवनाथ जैन भवन में शिविर के चौथे दिन आचार्य प्रसन्न सागर ने कहा कि चिंता चिता है। चिंता किसी समस्या का समाधान नहीं है। समस्या का समाधान तो चिंतन में है । तुम अपना थोड़ा सा चिंतन बदल लो , बस तुम्हारे दुःख खत्म हो जाएंगे। जीवन में दुःख है कहां, और यदि थोड़ा बहुत है भी तो , उसमें से सुख खोज लो, दुःख में से सुख खोजा जा सकता है। दुःख में सुख खोजने की एक कला है। यह कला तुम्हें सीखनी होगी। मैं वही कला तो सिखा रहा हूं। बड़े – बड़े दुखों में छोटे – छोटे सुख खोजे जा सकते हैं। खोने के पीछे शोक करने के बजाय जो बच गया है और जो मिला है उसका सुख भोगो। इसी में समझदारी है , इससे पीड़ा कम होगी , खुशियां बढ़ेंगी। जो है सो है – इसी से जीवन में आनंद भर जाएगा।
इस अवसर पर आचार्य प्रसन्न सागर ने आत्मा की शुद्धि , तप – त्याग और साधना के महत्व को समझाया । आचार्य ने कहा कि तुम अपने जीवन को सुंदर – व्यवस्थित बनाओ, अस्त – व्यस्त नहीं।