दरअसल, पूर्व की व्यवस्था में उपग्रहों का प्रक्षेपण आपूर्ति-आधारित मॉडल पर हो रहा था। पिछले साल तक इसरो वित्त मंत्रालय की ओर से जारी फंड के आधार पर केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के लिए उपग्रहों का प्रक्षेपण करता था। यह सार्वजनिक संपत्ति होती थी और केंद्र सरकार के विभागों की ओर से वाणिज्यिक आधार पर उपग्रहों के आंकड़े या सेवाएं निजी क्षेत्र या एजेंसियों को बेचकर राजस्व उगाही भी होती थी। लेकिन, अब यह मॉडल मांग-आधारित कर दिया गया है। यानी, इसरो अब बाजार की मांग के आधार पर अपनी रॉकेट मुहैया कराएगा। मांग चाहे मंत्रालय की ओर से हो, आम आदमी या निजी क्षेत्र की ओर से। इसलिए अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के विस्तार के लिए बाजार जरूरी हो गया है।
इसरो अध्यक्ष सोमनाथ ने कहा कि, अगर संचार क्षेत्र को देखें तो यह लगभग 90 फीसदी निजी और केवल 10 फीसदी सरकारी उपयोग में है। टेलीविजन ब्रॉडकास्टिंग से लेकर आइटी अवसंरचना तक सब निजी हाथों में है। इसलिए इसरो की संचार अवसंरचना निजी क्षेत्र जा सकती है। यहां कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन, जहां तक भू-अवलोकन अवसंरचना (अर्थ ऑब्जर्वेशन इंफ्रास्ट्रक्चर) की बात है तो यह अब भी सरकारी उपयोग से बाहर नहीं निकल पाया है। उपग्रहों से मिलने वाले आंकड़ों का प्राइवेट इकोसिस्टम में उपयोग होना और उसका विस्तार जरूरी है। अगर यह नहीं होता है तो उपग्रहों की क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं हो पाएगा और वह केवल सरकारी उपयोग या अनुसंधान तक सीमित रह जाएगा। इसे कमर्शियल इकोसिस्टम में लाकर उसका उपयोग बढ़ाने के तरीके ढूंढने होंगे। तभी वाणिज्यिक गतिविधियां बढ़ेंगी और राजस्व भी। इसी तरह नेविगेशन क्षेत्र, मोबाइल सेवाओं आदि द्वितीयक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर मांग सृजित करना होगा। यह मांग कई स्तरों पर हो सकती है जो अभी तक नजरअंदाज है।
सोमनाथ ने कहा कि, जब तक एक वाणिज्यिक उत्पाद की तरह उपग्रहों के आंकड़े समाज के लिए जरूरी नहीं बनेंगे तब तक, उसकी बड़े पैमाने पर मांग सृजित नहीं होगी। इसके लिए इनोवेशन जरूरी है ताकि, उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों को एक आकर्षक उत्पाद में तब्दील किया जा सके। उदाहरण के तौर पर अमरीका जैसे विश्व के कई देशों में लोग यात्रा करने से पहले सटीक मौसम पूर्वानुमान देखते हैं। मोबाइल पर हर आधे घंटे पर यह सेवाएं मिलती हैं। इन सेवाओं के लिए उन्हें कुछ कीमत चुकानी पड़ती है। अंतरिक्ष आधारित सेवाएं कृषि क्षेत्र से लेकर, नियोजन, प्राक्कलन, ऋण अदायगी समेत कई क्षेत्रों में संभव है। इसरो ने तकनीकी क्षमता विकसित की है। अब इनोवेटिव विचारों के साथ बिजनेस मॉडल विकसित करना होगा।