संस्कृत और प्राकृत सहित कई भाषाओं के विद्वान चारुकीर्ति स्वामी पिछले कुछ समय से स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं से परेशान थे। उनका इलाज किया जा रहा था। स्वामी के निधन से समूचे जैन समाज में शोक की लहर है। कर्नाटक के साथ ही देश के अन्य हिस्सों में भी उनके हजारों भक्त थे।
आदिचुनचनगिरी के संत निर्मलानंदनाथ स्वामी ने भी अस्पताल का दौरा किया। स्वामी का जन्म 3 मई, 1949 को कर्नाटक के वारंग में रत्नवर्मा के रूप में हुआ था। उन्होंने 12 दिसंबर, 1969 को श्रवणबेलगोला पीठ में धर्माचार्य का पद ग्रहण किया था।
स्वामी देश के उन गिने-चुने विद्वानों में शामिल थे जिनकी प्राकृत भाषा पर भी अच्छी पकड़ थी। उन्होंने प्राकृत के साहित्य को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 1981, 1993, 2006 और 2018 में चार बार श्रवणबेलगोला में गोम्मटेश्वर प्रतिमा का महामस्तकाभिषेक किया था।
मालूम हो कि महामस्तकाभिषेक 12 वर्षों में एक बार आयोजित किया जाता है। सीएम ने जताया शोक स्वामी के निधन पर मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने शोक व्यक्त किया है और यह भी घोषणा की है कि राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार जैन रीति-रिवाज के अनुसार किया जाएगा।