इनमें से कुछ को मरम्मत की जरूरत है जबकि बाकी रखरखाव की कमी के कारण काम नहीं कर रहे हैं। इन संयंत्रों के उच्च रखरखाव लागत को वहन करने में असमर्थता जताते हुए स्वास्थ्य विभाग ने अब पीएसए ऑक्सीजन संयंत्रों की वार्षिक मरम्मत और रखरखाव के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन National Health Mission (एनएचएम) निधि के तहत केंद्र से वित्तीय सहायता मांगी है।कुल मिलाकर, 243 संयंत्रों की क्षमता 1,33,797 लीटर प्रति मिनट (एलपीएम) उत्पादन की है। इनमें से तीन संयंत्रों की क्षमता 2,000 एलपीएम, 43 की क्षमता 1,000 एलपीएम और 112 की क्षमता 500 से 960 एलपीएम के बीच है। 85 संयंत्र 500 एलपीएम से कम उत्पादन करते हैं।
स्वास्थ्य मंत्री दिनेश गुंडूराव ने अक्टूबर में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा से मुलाकात की थी। एक ज्ञापन सौंपकर राज्य को पीएम केयर्स फंड के तहत आवंटित ऑक्सीजन संयंत्रों और वेंटिलेटर ventilator के रखरखाव के लिए केंद्र की सहायता मांगी थी।
स्वास्थ्य मंत्री के अनुसार इन संयंत्रों के रखरखाव की लागत काफी अधिक है। इनमें से प्रत्येक संयंत्र के रखरखाव पर सालाना 5 लाख रुपए से अधिक खर्च करने की आवश्यकता है। इन संयंत्रों के माध्यम से उत्पन्न ऑक्सीजन की शुद्धता 93 प्रतिशत से अधिक न होने के कारण इसका उपयोग गंभीर मरीजों के लिए आइसीयू में नहीं किया जा सकता है। महामारी के दौरान ऑक्सीजन की मांग अधिक थी, इसलिए इन संयंत्रों से ऑक्सीजन का उपयोग सामान्य वार्डों में मरीजों के लिए किया गया था।
मंत्री ने कहा कि गंभीर मरीजों के लिए आइसीयू में ऑक्सीजन सिलेंडर का उपयोग करना न केवल अधिक लागत प्रभावी है बल्कि फायदेमंद भी है। इसकी शुद्धता पीएसए संयंत्रों के माध्यम से उत्पन्न की गई शुद्धता से बेहतर है।