सिविल जज ने पत्र में लिखा, “मैं इस पत्र को बेहद दर्द और निराशा में लिख रही हूं। इस लेटर का मेरी कहानी बताने और प्रार्थना करने के अलावा कोई उद्देश्य नहीं है। मेरे सबसे बड़े अभिभावक (सीजेआई) ने मुझे अपना जीवन समाप्त करने की अनुमति दें। मैं बहुत उत्साह और इस विश्वास के साथ न्यायिक सेवा में शामिल हुई था कि मैं आम लोगों को न्याय दिलाऊंगी। मैं क्या जानती थी कि मैं जिस कार्य के लिए जा रही हूं, वहां पर शीघ्र ही मुझे न्याय का भिखारी बना दिया जाएगा।
मेरी सेवा के थोड़े से ही समय में मुझे खुली अदालत में दुर्व्यवहार का दुर्लभ सम्मान मिला है। मेरे साथ हद दर्जे तक यौन उत्पीड़न किया गया है। मेरे साथ बिल्कुल कूड़े जैसा व्यवहार किया गया है। मेरी दूसरों को न्याय दिलाने की आशा थी। लेकिन क्या भला मिला।
“महिला खिलौना बनना सीख लें”
उन्होंने आगे लिखा कि मैं भारत में काम करनी वाली महिलाओं से कहना चाहती हूं। यौन उत्पीड़न के साथ जीना सीखें। यह हमारे जीवन का सत्य है। पॉश अधिनियम, यह हमसे बोला गया एक बड़ा झूठ है। कोई सुनता नहीं, कोई परेशान नहीं करता। शिकायत करोगी तो प्रताड़ित किया जायेगा। अगर कोई महिला सोचती है कि आप सिस्टम के खिलाफ लड़ेगे, तो मैं आपको बता दूं, मैं ऐसा नहीं कर सकती। मैं जज हूं, मैं अपने लिए निष्पक्ष जांच तक नहीं कर सकी। चलो न्याय क्लोज करें। मैं सभी महिलाओं को सलाह देती हूं कि वे खिलौना या निर्जीव वस्तु बनना सीखें।