पांच साल पहले प्रशासन ने पुल की जगह ग्रामीणों को एक नाव थमा कर अपने दायित्व का निर्वहन कर लिया। अब यह नाव भी पूरी तरह से टूट चुकी है। वहीं पुल को लेकर ग्रामीणों की आस नाव की तरह ही टूट चुकी है, इसलिए इस बार ग्रामीण प्रशासन से पुल नहीं बल्कि एक टूटी हुई नाव की जगह नई नाव देने की मांग कर रहे हैं।
अन्य आवश्यक सुविधाओं की भी कमी
एसईसीएल द्वारा कोयला खदान खोले जाने के बाद से परसवार कला व अन्य आस-पास के ग्रामों के नागरिकों को अपने क्षेत्र में बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, पेय जल के क्षेत्र में कार्य होने की उम्मीद जगी थी। लेकिन एसईसीएल व प्रशासनिक ढुलमुल रवैये के कारण अब तक स्वास्थ्य, शिक्षा सड़क व पेयजल के क्षेत्र में कोई ठोस कार्य नहीं हो सका है।
अब टूट गई है ग्रामीणों की आस
प्रशासनिक तंत्र सिर्फ परसवारकला के मध्य से गुजरने वाली प्राकृतिक धरोहर महान नदी से रेत निकालने की भी कार्य योजना बनाकर परसवार कला व अन्य आसपास के नागरिकों की जीवन शैली में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध न कराकर दोहन के कार्य में लगा है। इसी कारण जिस तरह नाव टूटी है, उसी तरह प्रशासन से मूलभूत सुविधा की आस भी परसवार व अन्य आसपास के ग्रामीणों की टूट गई है।