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Diwali 2024: दिवाली की तैयारी में परिवार सहित जुटे कुम्हार, घरों को रोशन करने चाक की रफ्तार हुई तेज

Diwali 2024: दीपों का पर्व दीपावली को महज एक सप्ताह बचा है। दीपावली पर धन लक्ष्मी को प्रसन्न करने मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हारों का चाक तेजी से चलने लगा है।

बालोदOct 22, 2024 / 02:39 pm

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Diwali 2024
Diwali 2024: दीपों का पर्व दीपावली को महज एक सप्ताह बचा है। दीपावली पर धन लक्ष्मी को प्रसन्न करने मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हारों का चाक तेजी से चलने लगा है। उन्हें अच्छी ग्राहकी की उम्मीद है, जिससे उनकी रोजी-रोटी बेहतर ढंग से चल सकेगी।
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पूरा परिवार जुटा दीपक बनाने में

कुम्हारों का पूरा परिवार मिट्टी के दीपक बनाने में लगा है। जिले के ग्राम नेवारीकला, सांकरी, कंवर, ओरमा, बरही में स्थित कुम्हारों की बस्ती में मिट्टी का सामान तैयार किया जा रहा है। ग्राम नेवारी निवासी घनश्याम, ब्रिज लाल आदि ने बताया कि मिट्टी के दीपक बनाने में मेहनत लगती है। रोज 100 से 200 दीपक बना रहे हैं। मिट्टी के बर्तन व दीए की खरीदारी में हर साल कमी से कुम्हार चिंतित हैं। इसके बाद भी कुम्हारों को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में मिट्टी के बर्तनों की मांग बढ़ेगी।
मिट्टी से निर्मित चार, छह, बारह एवं चौबीस दीपों वाली मिट्टी की ग्वालिन की पूजा की जाती है। मिट्टी की छोटी मटकियों में धान की खीलें भरकर उनकी पूजा होती है। मिट्टी के बर्तन व दीये की बिक्री होती है, तब कुम्हार परिवार दिवाली मनाया है।

पूरा परिवार बनाता है मिट्टी के दीपक, बर्तन

जिले के ग्राम नेवारीकला व ग्राम सांकरी, ओरमा, कंवर, बरही में कई कुम्हार परिवार मिट्टी के बर्तन, दीपक बनाते हैं। वर्तमान में इन कुम्हारों के घरों में मिट्टी के दीपक, मटकी आदि बनाने माता-पिता के साथ उनके बच्चे भी हाथ बंटा रहे हैं। कोई मिट्टी गूंथने में लगा है तो किसी के हाथ चाक पर बर्तनों को आकार दे रहे हैं।

बाजारों में इलेक्ट्रॉनिक्स झालरों की चमक-धमक

घर के आठ सदस्य दिन रात मेहनत कर एक दिन में एक सैकड़ा दीपक बना पाते हैं। दूसरी ओर बाजारों में इलेक्ट्रॉनिक्स झालरों की चमक-दमक के बीच मिट्टी के दीपक की रोशनी धीमी पड़ती जा रही है। लोग दीपक का उपयोग महज पूजन के लिए करने लगे हैं।

दीपावली व गर्मी में बढ़ती है मांग

कुम्हार राजेश, शिवचरण का कहना है कि दीपावली व गर्मी के सीजन में मिट्टी से निर्मित बर्तनों की मांग बढ़ जाती है। बाद के दिनों में वे मजदूरी कर परिवार का पेट पालते हैं। दूर से मिट्टी लाना, महंगी लकड़ी खरीदकर दीपक पकाने में जो खर्च आता है, उसके बदले आमदनी लगातार घटती जा रही है।

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