चर्चा के दौरान बूढ़ी नगरवासियों ने बताया कि यह वर्षों पुरानी एक परंपरा है। जहां घर के क्लेश को बाहर निकालने और घर की सुख शांति के लिए मारबत का पुतला बनाकर उसे गांव के बाहर ले जाकर विसर्जित करते हैं या फिर जला देते हैं। वर्षों से चली आ रही यहां परंपरा आज भी चल रही है। लोग पूरे उत्साह के साथ इस पर्व मनाते हैं।
शहर में इस वर्ष भी बूढ़ी शिव मंदिर के पास से पूतना नामक रक्षसी का पुतला निकाला गया। जिसे विभिन्न मार्गो का भ्रमण करते हुए नगर की सीमा के बाहर ले जाकर घेऊन जा री नारबोद कहते हुए दहन किया गया। बता दें कि पोला पर्व के ठीक दूसरे दिन नारबोद का पर्व मनाया जाता है। प्राचीन मान्यता के अनुसार बारिश के इस मौसम में मौसमी बीमारियों व महामारी का खतरा रहता है। मौसमी बीमारियों और महामारी से गांव को बचाने के लिए लोग एक पुतला बनाकर उसे गांव से बाहर ले जाकर जला देते हैं। मान्यता अनुसार इस पर्व को असुर शक्ति पर विजय के रूप में मनाया जाता है और पूतना के पुतले को ही नारबोद कहा जाता है।
चर्चा के दौरान बूढ़ी नगरवासियों ने बताया कि यह वर्षों पुरानी एक परंपरा है। जहां घर के क्लेश को बाहर निकालने और घर की सुख शांति के लिए मारबत का पुतला बनाकर उसे गांव के बाहर ले जाकर विसर्जित करते हैं या फिर जला देते हैं। वर्षों से चली आ रही यहां परंपरा आज भी चल रही है। लोग पूरे उत्साह के साथ इस पर्व मनाते हैं।