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बालाघाट

गूंजती रही आवाज, घेऊन जा री नारबोद

पूतना रक्षसी के पुतले का दहन कर मनाया गया मारबत पर्व
घर की सुख शांति और बीमारियों से निजात पाने की गई कामना
ढोल नगाड़े के साथ गांव के बाहर पुतले का किया दहन

बालाघाटSep 03, 2024 / 09:44 pm

mukesh yadav

पूतना रक्षसी के पुतले का दहन कर मनाया गया मारबत पर्व घर की सुख शांति और बीमारियों से निजात पाने की गई कामना ढोल नगाड़े के साथ गांव के बाहर पुतले का किया दहन

पूतना रक्षसी के पुतले का दहन कर मनाया गया मारबत पर्व
घर की सुख शांति और बीमारियों से निजात पाने की गई कामना
ढोल नगाड़े के साथ गांव के बाहर पुतले का किया दहन

बालाघाट. प्राचीन समय से चली आ रही परंपरा को जीवित रखते हुए मंगलवार को मुख्यालय सहित अन्य ग्रामीण अंचलों में नारबोद पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। ग्रामीण अंचलों के साथ नगरी क्षेत्र में भी इस पर्व की धूम नजर आई। ग्रामीण क्षेत्र में लोग इस पर्व को लेकर उत्साहित दिखे। अल सुबह से ही ग्रामीण क्षेत्रों में घेऊन जा री नारबोद के स्वर गूंजते रहे। ग्रामीणों ने मारबत के पुतले पर खांसी खोखला लिखकर गांव की सीमा के बाहर जाकर पुतला का दहन किया। कई किसानों ने अपनी फसलों को कीट बीमारी आदि से बचाने के लिए गराड़ी नामक पौधे की टहनियां फसलों में गड़ा कर अच्छी फसल होने की कामना की। शहरी क्षेत्र में घर की सुख समृद्धि व शांति के लिए लोगों ने पूतना नामक पुतले को सीमा के बाहर ले जाकर दहन कर नदी और तालाबों में मिट्टी के दियो का विसर्जन किया।
शहर में इस वर्ष भी बूढ़ी शिव मंदिर के पास से पूतना नामक रक्षसी का पुतला निकाला गया। जिसे विभिन्न मार्गो का भ्रमण करते हुए नगर की सीमा के बाहर ले जाकर घेऊन जा री नारबोद कहते हुए दहन किया गया। बता दें कि पोला पर्व के ठीक दूसरे दिन नारबोद का पर्व मनाया जाता है। प्राचीन मान्यता के अनुसार बारिश के इस मौसम में मौसमी बीमारियों व महामारी का खतरा रहता है। मौसमी बीमारियों और महामारी से गांव को बचाने के लिए लोग एक पुतला बनाकर उसे गांव से बाहर ले जाकर जला देते हैं। मान्यता अनुसार इस पर्व को असुर शक्ति पर विजय के रूप में मनाया जाता है और पूतना के पुतले को ही नारबोद कहा जाता है।
वर्षों से चली आ रही परंपरा
चर्चा के दौरान बूढ़ी नगरवासियों ने बताया कि यह वर्षों पुरानी एक परंपरा है। जहां घर के क्लेश को बाहर निकालने और घर की सुख शांति के लिए मारबत का पुतला बनाकर उसे गांव के बाहर ले जाकर विसर्जित करते हैं या फिर जला देते हैं। वर्षों से चली आ रही यहां परंपरा आज भी चल रही है। लोग पूरे उत्साह के साथ इस पर्व मनाते हैं।
बालाघाट. प्राचीन समय से चली आ रही परंपरा को जीवित रखते हुए मंगलवार को मुख्यालय सहित अन्य ग्रामीण अंचलों में नारबोद पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। ग्रामीण अंचलों के साथ नगरी क्षेत्र में भी इस पर्व की धूम नजर आई। ग्रामीण क्षेत्र में लोग इस पर्व को लेकर उत्साहित दिखे। अल सुबह से ही ग्रामीण क्षेत्रों में घेऊन जा री नारबोद के स्वर गूंजते रहे। ग्रामीणों ने मारबत के पुतले पर खांसी खोखला लिखकर गांव की सीमा के बाहर जाकर पुतला का दहन किया। कई किसानों ने अपनी फसलों को कीट बीमारी आदि से बचाने के लिए गराड़ी नामक पौधे की टहनियां फसलों में गड़ा कर अच्छी फसल होने की कामना की। शहरी क्षेत्र में घर की सुख समृद्धि व शांति के लिए लोगों ने पूतना नामक पुतले को सीमा के बाहर ले जाकर दहन कर नदी और तालाबों में मिट्टी के दियो का विसर्जन किया।
शहर में इस वर्ष भी बूढ़ी शिव मंदिर के पास से पूतना नामक रक्षसी का पुतला निकाला गया। जिसे विभिन्न मार्गो का भ्रमण करते हुए नगर की सीमा के बाहर ले जाकर घेऊन जा री नारबोद कहते हुए दहन किया गया। बता दें कि पोला पर्व के ठीक दूसरे दिन नारबोद का पर्व मनाया जाता है। प्राचीन मान्यता के अनुसार बारिश के इस मौसम में मौसमी बीमारियों व महामारी का खतरा रहता है। मौसमी बीमारियों और महामारी से गांव को बचाने के लिए लोग एक पुतला बनाकर उसे गांव से बाहर ले जाकर जला देते हैं। मान्यता अनुसार इस पर्व को असुर शक्ति पर विजय के रूप में मनाया जाता है और पूतना के पुतले को ही नारबोद कहा जाता है।
वर्षों से चली आ रही परंपरा
चर्चा के दौरान बूढ़ी नगरवासियों ने बताया कि यह वर्षों पुरानी एक परंपरा है। जहां घर के क्लेश को बाहर निकालने और घर की सुख शांति के लिए मारबत का पुतला बनाकर उसे गांव के बाहर ले जाकर विसर्जित करते हैं या फिर जला देते हैं। वर्षों से चली आ रही यहां परंपरा आज भी चल रही है। लोग पूरे उत्साह के साथ इस पर्व मनाते हैं।

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