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बालाघाट

आज मनाया जाएगा पोला पाटन पर्व, किसान करेंगे बैलों की पूजा

किसानों का सबसे बड़ा और पारंपरिक पोला पर्व

बालाघाटSep 02, 2024 / 12:04 pm

mukesh yadav

किसान करेंगे बैलों की पूजा

किसान करेंगे बैलों की पूजा

बालाघाट/वारासिवनी। किसानों का सबसे बड़ा और पारंपरिक पोला पर्व सोमवार को जिलेभर में धूमधाम से मनाया जाएगा। इस मौके पर जिला मुख्यालय के भटेरा, गुजरी बाजार, कोसमी सहित वारासिवनी तहसील क्षेत्र जय स्तंभ चौक पर शाम 5 बजे मेले का आयोजन किया जाएगा। पशु धन की पूजा की जाएगी।
पोला पर्व पर किसान अपने बैलों को लेकर मेला स्थल में एकत्रित होंगे। यहां ग्राम के वरिष्ठ या आयोजन समिति अध्यक्ष पशु धन के साथ अन्नदाता किसानों की आरती उताकर उनका सम्मान करेंगे। इसके बाद बैल जोडिय़ों के बीच दौड़ स्पद्र्धा होगी। विजयी जोड़ी को सम्मानीत किया जाएगा। घर-घर में बैल जोडिय़ों के साथ आए किसानों की पूजा कर उन्हें भेंट देकर जोडिय़ों को भोग लगाया जाएगा।
पर्व की पूर्व रात्रि पर किसानों ने गर्भ पूजन की परंपरा निभाई। ऐसी मान्यता हैं कि इसी दिन अन्न माता गर्भ धारण करती हैं, धान के पौधों में दूध भरता हैं, इस दिन किसी को भी खेतों में जाने की अनुमति नहीं रहती हैं। पोला पर्व की पूर्व रात्रि गांव के पुजारी, मुखिया और कुछ व्यक्ति गांव के बाहरी हिस्सों, सीमाओं में जाकर देवी-देवताओं की पूजा अर्चना करते हैं, जो पूरी रात चलती हैं। पूजा के दौरान चढाए गए प्रसाद को वहीं ग्रहण किया जाता हैं। उसे घर पर लाने की अनुमति नहीं रहती हैं। इसी दिन पशु धन को किसान महुआ, हल्दी और आटे का गोला बनाकर खिलाते हैं और उनको हल्दी का लेप लगाते हैं।
बाजार में नजर आए लकड़ी के नंदी
पोला पर्व को लेकर बाजार में लकड़ी और मिट्टी के घुड़ले (बैल-नंदी) की दुकानें लगी नजर आई। किसानों ने अपने बच्चों के लिए नंदी के प्रतीक इन खिलौनों की खरीदी कर उन्हें देते हैं। इनकी भी पूजा अर्चना की जाती है। वहीं पोला पर्व के दूसरे दिन नारबोद मार्बत का पर्व मनाया जाता है। इस दिन नारबोद के पुतले को शहर भ्रमण कराने के बाद शहर की सीमा के बाहर दहन किए जाने की परंपरा है।
पर्व की पूर्व रात्रि पर किसानों ने गर्भ पूजन की परंपरा निभाई। ऐसी मान्यता हैं कि इसी दिन अन्न माता गर्भ धारण करती हैं, धान के पौधों में दूध भरता हैं, इस दिन किसी को भी खेतों में जाने की अनुमति नहीं रहती हैं। पोला पर्व की पूर्व रात्रि गांव के पुजारी, मुखिया और कुछ व्यक्ति गांव के बाहरी हिस्सों, सीमाओं में जाकर देवी-देवताओं की पूजा अर्चना करते हैं, जो पूरी रात चलती हैं। पूजा के दौरान चढाए गए प्रसाद को वहीं ग्रहण किया जाता हैं। उसे घर पर लाने की अनुमति नहीं रहती हैं। इसी दिन पशु धन को किसान महुआ, हल्दी और आटे का गोला बनाकर खिलाते हैं और उनको हल्दी का लेप लगाते हैं।
बाजार में नजर आए लकड़ी के नंदी
पोला पर्व को लेकर बाजार में लकड़ी और मिट्टी के घुड़ले (बैल-नंदी) की दुकानें लगी नजर आई। किसानों ने अपने बच्चों के लिए नंदी के प्रतीक इन खिलौनों की खरीदी कर उन्हें देते हैं। इनकी भी पूजा अर्चना की जाती है। वहीं पोला पर्व के दूसरे दिन नारबोद मार्बत का पर्व मनाया जाता है। इस दिन नारबोद के पुतले को शहर भ्रमण कराने के बाद शहर की सीमा के बाहर दहन किए जाने की परंपरा है।

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