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बागपत मुख्यालय से तीन किलोमीटर दूर पूरब दिशा की ओर सिसाना और बाघू गांव के खेड़े पर नाग मंदिर के नाम से विख्यात है। इसको लाल मंदिर के नाम से भी नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि 100 साल पुराना यह मंदिर का स्थान है। इसकी बड़ी मान्यता है, लोगों का कहना है कि इस नाग मंदिर में जो भी अपनी मनोकामना मांगने के लिए आता है। उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। यहां पर रहने वाले पुजारी विजेंद्र भारद्वाज का कहना है कि नाग पंचमी पर काफी संख्या में यहां लोग आते हैं और पूजा अर्चना करते हैं।
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मंदिर के इतिहास के बारे में बताते हुए कहते हैं कि इस खेड़े पर सिसाना गांव बसा हुआ था और पास ही खत्री समाज का भी एक कबीला यहाँ रहता था। जिसमें खत्री लोग रहा करते थे, खत्री लोग सिसाना के लोगों को परेशान किया करते थे। यमुना से पानी लेकर लौट रहे लोगों पर गुलेल से हमला कर उनकी मटकिया फोड़ डालते थे और कई तरह के खुराफात भी इन लोगों द्वारा किए जाते रहे, जिससे सिसाना के लोग परेशान रहते थे। एक बार सिसाना गांव के लोगों ने उनको सबक सिखाने के लिए खत्री समाज के लोगों को दावत पर बुलाया। इसके बाद दावत के स्थान को चारों तरफ घा-फूस और ज्वलनशील पदार्थ डालकर आग लगा दी।
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इस अग्नि में खत्री समाज के कई दर्जन लोग जिंदा जलकर मर गए। बताया जाता है की एक महिला जो गर्भवती थी, वह ही उस आग से बच पाई और उसने सिसाना के लोगों को श्राप दिया और यहां से चली गई। यहां के लोग गर्भवती महिला के श्राप से मुक्त होने के लिए इस नाग मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए आते हैं और प्रार्थना करते हैं कि उनको श्राप से मुक्ति मिले। कहा जाता है कि खत्री समाज के लोग राजस्थान महाराष्ट्र जैसे दूरदराज के स्थानों पर रहते हैं और उन्होंने ही इस मंदिर का निर्माण कराया था। आज भी दीपावली और दशहरा पर वे लोग यहां भंडारा करने के लिए आते हैं जिसमें हजारों लोग शामिल होते हैं।