सीएचसी पीएचसी पर दवा और चिकित्सकों की उपलब्धता न होने के कारण पूरा भार जिला अस्पताल और जिला महिला अस्पताल पर है। सीएमओ के अंडर में कई लेडी मेडिकल अफसर है जिन्हें पीएचसी और सीएचसी पर तैनात भी किया गया है लेकिन उनके द्वारा मेडिकल किया नहीं जाता। इसके कारण पास्को एक्ट, दुष्कर्म आदि से संबधित सारे मेडिकल भी जिला महिला अस्पताल में होते है। यहां स्त्री रोग विशेषज्ञ और मेडिकल अफसर की भारी कमी है। महिला रोग विशेषज्ञ की कमी के कारण एक ही डा. रश्मि सिंन्हा मेडिकल भी करती है और ऑपरेशन भी उन्हीं को करना पड़ता है। आसपास के जिलों के मरीज भी यहां आते हैं।
महिला चिकित्सालय की सीएमएस डॉ. अमिता अग्रवाल कहती है कि चिकित्सालय विशेषज्ञ डाक्टरों की कमी से जूझ रहा है। शासन-प्रशासन सहित अब तक स्वास्थ्य विभाग को दर्जनों बार डाक्टरों की कमी की चिट्ठी भेजी गई लेकिन कोई भी सार्थक परिणाम सामने नहीं आ रहा है। अब मजबूरी में जो संसाधन है उसी से काम चलाया जा रहा है।
जिला अस्पताल का हाल इससे अलग नहीं है। यहां रेडियोलॉजिस्ट का पद सात महीने से अधिक समय से रिक्त पड़ा है। यहां के रेडियोलाजिस्ट को गोरखपुर भेज दिया गया और आजमगढ़ में तैनाती आज तक नहीं की गयी। न्यूरोलाजिस्ट, यूरोलाजिस्ट की तैनाती आज तक नहीं हो सकी। यहां भी दवाआें का आभाव है कुछ गिनी चुनी दवा से काम चलाया जा रहा है। एंटी रैबीज के लिए अस्पताल में आयेदिन बवाल होता है। यहां भी एसआईसी का यही रोना है जो संसाधन है उसमें काम चलाया जा रहा है। विशेषज्ञ अथवा रेडियोलाजिस्ट की तैनाती तो शासन के स्तर पर ही होनी है हम पत्र ही लिख सकते है जो काम हम निरंतर कर रहे हैं।
तरवां में सौ बेड का अस्पताल क्यों बनवाया गया आम आदमी आजतक यहीं नहीं समझ पाया है। यहां मरीजों के लिए कुछ भी नहीं है। सुपर स्पेशलिटी अस्पताल एंव मेडिकल कॉलेज में भी स्टॉफ की भारी कमी है। कोई डॉक्टर यहां जाने के लिए तैयार नहीं है। सीएचसी पीएचसी की स्थिति बदतर है। रहा सवाल दवाओं का तो सौ टैबलेट की डिमांड हो रही है तो 10 मिल जा रहा है। सब मिलाकर स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह बेपटरी है और कागज और भाषण में ही सबकुछ ठीकठाक दिखाया जा रहा है।