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आजमगढ़

Lok Sabha by elections: उपचुनाव में अपने ही बढ़ाएंगे सपा की मुसीबत, एक दशक से आपस में चल रही कुर्सी की जंग

Lok Sabha by elections सपा मुखिया अखिलेश यादव द्वारा आजमगढ़ संसदीय सीट से त्यागपत्र देने के बाद यहां उपचुनाव होना तय है। उपचुनाव की चर्चा मात्र से कई नेता संसद पहुंचने के लिए बेचैन दिख रहे है। पूर्व में आपसी खींचतान के कारण यहां सपा को नुकसान उठाना पड़ चुका है। अब एक बार फिर घमासान बढ़ती दिख रही है। इस आपसी खींचतान का नुकसान सपा को उठाना पड़ सकता है।

आजमगढ़Mar 31, 2022 / 05:26 pm

Ranvijay Singh

प्रतीकात्मक फोटो

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पत्रिका न्यूज नेटवर्क
आजमगढ़. Lok Sabha by elections सपा मुखिया अखिलेश यादव द्वारा विधानसभा चुनाव के बाद आजमगढ़ संसदीय सीट से त्यागपत्र देने के बाद होने वाले उपचुनाव को लेकर सियासत गरम हो गयी है। सभी राजनीतिक दल सीट हासिल करने की रणनीति तैयार करने में जुटे है। बसपा ने अपना प्रत्याशी भी घोषित कर दिया है। वहीं विधानसभा चुनाव में सभी दस सीट जीतने के बाद सपा का दावा इस सीट पर काफी मजबूत हुआ है लेकिन पार्टी की गुटबाजी सपा मुखिया की मुसीबत बढ़ा रही है। पूर्व में गुटबाजी और भीतरघात का नुकसान भी सपा उठा चुकी है। यही वजह है कि इस बार पार्टी हर कदम फूंक फूंककर रख रही है लेकिन राह आसान नहीं दिख रही।

आजमगढ़ जिले को सपा का गढ़ माना जाता है। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में सभी दसों सीट पर जीतकर सपा ने इसे साबित भी कर दिया है लेकिन लोकसभा की गणित सपा के लिए कभी आसान नहीं रही है। वर्ष 1989 में बसपा ने यहां यादव कार्ड खेलकर अपना खाता खोला था। इसके बाद से ही सपा और बसपा के बीच मुकाबला होता रहा है। वर्ष 2008 के उप चुनाव में बसपा ने अकबर अहमद डंपी को उतारा था तो बीजेपी ने बाहुबली रमाकांत यादव पर दाव लगाया था। यह पहला चुनाव था जब गुटबाजी के चलते सपा तीसरे स्थान पर चली गयी थी। बलराम यादव को करारी हार का सामना करना पड़ा था। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में रमाकांत यादव ने यहां बीजेपी का खाता खोला था।

वर्ष 2014 में चुनाव में यहां सपा में खुलकर गुटबाजी दिखी थी। पार्टी ने पहले बलराम यादव फिर हवलदार को प्रत्याशी बनाया था लेकिन गुटबाजी को देखते हुए सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव अंतिम समय में खुद मैदान में उतर गए थे। उस समय गुटबाजी का ही नतीजा था कि सपा ने बड़ी मुश्किल से जीत हासिल की थी। मुलायम के लड़ने के कारण कई नेताओं के सपने टूट गए थे।

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा मुखिया अखिलेश यादव यहां से खुद चुनाव लड़े। इससे फिर स्थानीय नेताओं का सांसद बनने का सपना टूट गया। अब अखिलेश यादव ने सांसद पद से त्यागपत्र दे दिया है। ऐसे में एक बार फिर यहां उपचुनाव होना है। अब आठ साल से सांसद बनने का इंतजार कर रहे नेताओं में एक बार फिर खींचतान शुरू हो गयी है। चूंकि विधानसभा चुनाव में सपा सबसे ज्यादा मजबूत रही, इसलिए अबकी भितरघात का खतरा ही उसे सबसे ज्यादा होगा। वर्ष 2014 में सपा चुनाव के अंतिम समय में मुलायम सिंह यादव प्रत्याशी घोषित हुए तो कइयों के अरमान पर पानी फिर गया था।

वर्ष 2008 के बाद एक बार फिर से उपचुनाव होने से स्थानीय लोगों ने उम्मीद पाली है, जिन्हें विधानसभा चुनाव में टिकट मिलते-मिलते रह गया था। वोटों के समीकरण के लिहाज से देखें तो आजमगढ़ सदर संसदीय क्षेत्र अंतर्गत पांचों विधानसभा आजमगढ़ सदर, मुबारकपुर, सगड़ी, गोपालपुर, मेंहनगर में औसतन पिछड़े मतदाताओं की तादाद ज्यादा है।

वर्तमान में चल रहे एमएलसी चुनाव में भाजपा प्रत्याशी अरुण कुमार यादव को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है, जबकि उनके पिता रमाकांत यादव सपा से विधानसभा पहुंचे हैं। टिकट के इस खेल में भी चुनावी विशेषज्ञ साइड इफेक्ट के रूप में देख रहे हैं। हालांकि, सीधे तौर पर अभी कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है, लेकिन भितरघात होने की नींव जरूर तैयार होने लगी है।

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