श्रीराम के चरित्र का एक और उदाहरण देखें। एक दिन युद्धभूमि से थका-हारा रावण अचानक महल में पहुंचा। मंदोदरी ने उससे युद्ध का और उसके स्वास्थ्य का हाल पूछा। रावण कहता है कि आज मेरी वेदना असह्य है। मंदोदरी जानना चाहती है कि क्या किसी दिव्यास्त्र का आघात लगा है? तो रावण कहता है कि आज राम ने मुझे शील का बाण मारा है, जिसकी कोई चिकित्सा नहीं है। युद्ध में नि:शस्त्र हो जाने पर आज जब मैं किंकत्र्तव्यविमूढ़ हो रहा था, तो राम ने अवसर होने पर भी मुझे मारने के बजाय छोड़ दिया। उस तपस्वी ने कहा कि ‘लंकेश! मैं रघुवंशी राम हूं, मैं निहत्थे पर वार नहीं करता। जाओ विश्राम करके शस्त्र लेकर आओ तब तुम्हारा वध करूंगा।’ रावण कहता है, यह असह्य है। श्रीराम किसी भी परिस्थिति में अपने इस चरित्र का त्याग नहीं करते, यही उनके मर्यादापुरुषोत्तम होने का अर्थ है।