भारत का राष्ट्रीय चुनाव अपने अंतिम चरण में प्रवेश कर चुका है। भारत में अगली सरकार को पाकिस्तान के साथ राजनीतिक संबंधों के प्रबंधन की बात करना आसान नहीं लग रहा है। पाकिस्तान से निपटने का सवाल एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बना हुआ है। जारी चुनाव बताता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा देश में प्रमुख चुनावी बहसों में से एक है। बालाकोट हमले के बाद पाकिस्तान की स्थिति और बदतर हुई है। भारतीय एयरस्ट्राइक को मोदी सरकार ने प्रतिष्ठा से जोड़कर जनता में देशभक्ति की लहर को उठा दी है। इस्लामाबाद को लग रहा है कि मोदी सरकार अगर दोबारा आती है तो उसे बातचीत के भारी मशक्कत करनी पड़ेगी। उसे भारत की कई शर्तों पर अमल करना पड़ सकता है। वहीं दूसरी सरकार के साथ वह नए सिरे से काम कर सकती हैं। भारत से बेहतर संबंध बनने के बाद ही उसे विश्व बिरादरी से राहत मिलने के आसार हैं। पाकिस्तान की सरकार ने पिछले कुछ समय से यह सुनिश्चित किया है कि यदि दोनों राज्य कई उत्कृष्ट मुद्दों को हल करने में गंभीरता से रुचि रखते हैं, तो बातचीत ही एकमात्र व्यावहारिक तरीका है।
पाकिस्तान के पास दो ही विकल्प हैं या तो वह आतंकवाद पर बड़ी कार्रवाई करके अमरीका का दिल जीत ले या भारत से दोस्ती करके अपना हित साध ले। इमरान खान के पास दूसरा रास्ता ज्यादा आसान है, क्योंकि पाकिस्तान की सेना ही आतंकवाद को पाल-पोस रही है। ऐसे में आतंकवादियों का सफाया करना पाकिस्तान के लिए असंभव है। वह भारत की नई सरकार से कुछ समझौते करके अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है। अगर पुरानी सरकार दोबारा आती है तो इमरान को कड़ी मशक्कत करनी होगी। मोदी सरकार अपनी शर्तों पर पाकिस्तान से बातचीत के रास्ते खोल सकती है। वही नई सरकार के साथ पाकिस्तान आसानी से दोस्ती का हाथ फैला सकता है। मगर मोदी की भारत में लोकप्रियता से इमरान खान भी वाकिफ हैं। वह जानते हैं कि इस चुनाव में मोदी को नकारा नहीं जा सकता है। वह चुनाव में मोदी की मजबूती को भांपने की कोशिश कर रहे हैं।