शुक्रवार को इस जनहित याचिका पर सुनवाई 5 मार्च तक स्थगित कर दी गई। पंजाब डॉक्यूमेंटेशन एंड एडवोकेसी प्रोजेक्ट संस्था और नौ अन्य लोगों द्धारा दायर इस जनहित याचिका में, उक्त अवधि के दौरान पुलिस द्धारा गायब किए लोगों के मामलों की उच्चस्तरीय जांच कराने और दोषी पुलिसकर्मियों को सजा देने और पीडि़तों को मुआवजा देने की मांग की गई है।
खंडपीठ ने पूछा मांग का आधार
चीफ जस्टिस रवि शंकर झा और जस्टिस राजीव शर्मा की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा कि इतने लंबे समय बाद अब इस तरह की मांग का क्या आधार है? इस पर याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट आरएस बैंस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में जांच के आदेश दिए थे।
उन्होंने बताया कि वर्ष 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने जीएस टोहड़ा की ओर से ऐसे ही एक मामले का हवाला देते हुए भेजे गए पत्र पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए मामले की जांच सीबीआई से करने के आदेश दिए थे। तब सीबीआई ने 1996 में सुप्रीम कोर्ट में अपनी जांच रिपोर्ट पेश कर बताया था कि 1984 से 1994 के बीच सिर्फ तरनतारन और अमृतसर के शमशान घाटों में ही अवैध तरीके से 984 लोगों का संस्कार किया गया था।
एडवोकेट बैंस ने हाईकोर्ट को बताया कि 1984 से 1995 के बीच करीब 6733 लोगों का एनकाउंटर, हवालात में मौत और उनके शवों के संस्कार किए जाने के मामले सामने आए थे। ऐसे मामलों के आरोपी पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों में से केवल 2 फीसदी को ही अब तक दोषी करार दिया गया है। बैंस ने मांग की कि अगर राज्य के सभी शमशान घाटों से उक्त अवधि में हुए संस्कार बारे जानकारी जुटाई जाए तो कई अन्य मामलों का खुलासा भी हो सकता है।