अफगाानिस्तान में तालिबान के सत्ता पर काबिज होने और हाल ही में वहां सरकार गठन की प्रक्रिया पूरी कर ली है। अमरीकी सैनिकों ने 19 साल 10 महीने और 10 दिन अफगानिस्तान में रहने के बाद वहां से वापसी कर ली है, जिसके बाद इस देश में तालिबान का दखल बढ़ गया और अंतत: तालिबान तथा हक्कानी नेटवर्क ने पाकिस्तान के सहयोग से वहां सरकार बना ली।
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रियाद से बाहर प्रिंस सुल्तान एयर बेस से सुरक्षा प्रणाली को हटाने का यह क्रम तब हुआ, जब अमरीका के खाड़ी अरब सहयोगियों ने अफगानिस्तान से अमरीकी सैनिकों की वापसी देखी। हालांकि, ईरान का मुकाबला करने के लिए खाड़ी देशों में अब भी हजारों सैनिक मौजूद हैं। वहीं, इस कदम के बाद खाड़ी अरब देशों को अमरीका की भविष्य से जुड़ी योजनाओं की चिंता सता रही है।
दूसरी ओर, दुनिया के ताकतवर देशों के साथ ईरान के परमाणु समझौते के खत्म होने के बाद इसको लेकर वियना में हो रही बातचीत भी अटक गई है। इससे क्षेत्र में आगे संघर्ष के बढ़ सकते हैं। न्यूज एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस ने अगस्त महीने के अंत में उपग्रह से जो तस्वीरें देखी हैं, उसमें साफ नजर आ रहा था कि कुछ बैटरी जो सऊदी अरब में रियाद से बाहर स्थापित की गई थी, उन्हें हटा लिया गया है। हाल ही में सऊदी अरब पर हुती विद्रोहियों ने ड्रोन से हमला किया, जिसमें आठ लोग घायल हो गए थे।
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वहीं, सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान ने कहा कि अफगानिस्तान की संप्रभुता का हम सम्मान करते हैं। इस कठिन समय से निपटने में सहायता प्रदान का वादा करते हैं। उन्होंने अफगानिस्तान के लोगों और पिछले महीने काबुल एयरपोर्ट पर हुए बम विस्फोट में मारे गए लोगों के परिवारों के प्रति संवेदना भी व्यक्त की।
प्रिंस फैसल ने कहा कि अफगान लोगों को बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के अपने देश के भविष्य के लिए विकल्प चुनने में सक्षम होना चाहिए। हमें उम्मीद है कि तालिबान और अफगानिस्तान की अन्य पार्टियां शांति और सुरक्षा बनाए रखने और नागरिकों के जीवन और संपत्ति की रक्षा करने के लिए काम करेंगी।
बता दें कि 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था और इस दौरान सऊदी अरब, पाकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात के साथ ये देश शामिल थे, जिन्होंने तालिबानी शासन को वैधता दी थी।