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अंबिकापुर

अर्चिता 4 साल से बना रहीं ‘इको फ्रेंडली’ गणेश, विसर्जन के बाद प्रतिमा ले लेती है पौधे का रूप

Ganesh Puja 2020: भगवान गणेश की प्रतिमा बनाते समय शहर की अर्चिता सिन्हा पवित्रता का रखतीं हैं पूरा ध्यान, भक्ति-भाव के साथ पर्यावरण को भी बचाने का संदेश

अंबिकापुरAug 22, 2020 / 12:25 pm

rampravesh vishwakarma

अर्चिता 4 साल से बना रहीं ‘इको फ्रेंडली’ गणेश, विसर्जन के बाद प्रतिमा ले लेती है पौधे का रूप

Archita Sinha is making Lord Ganesha

अंबिकापुर. कोरोना महामारी का असर इस बार गणेश चतुर्थी (Ganesh Puja 2020) पर भी पड़ा है। प्रशासन द्वारा गणेश पूजा शुरु होने के बाद से प्रतिमा के विसर्जन तक के लिए नियम बना दिए गए हैं। इन नियमों का पालन करना पूजन समितियों व लोगों के लिए अनिवार्य किया गया है। इस बार मूर्ति की साइज भी काफी छोटी रखी गई है।
अधिकांश मूर्तिकार जहां प्लास्टर ऑफ पेरिस का उपयोग कर भगवान गणेश की प्रतिमा तैयार कर रहे हैं, वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इको फे्रंडली प्रतिमा बना रहे हैं। इससे वे पर्यावरण को बचाने का संदेश भी दे रहे हैं।
ऐसा ही नेक काम शहर के दत्ता कॉलोनी निवासी अर्चिता सिन्हा द्वारा पिछले 4 साल से किया जा रहा है। वे खुद मिट्टी मंगाकर उसमे गंगा जल मिलाकर छोटी मूर्ति तैयार कर लोगों को प्रदान कर रहीं हंै। (Ganesh Puja 2020)

अर्चिता सिन्हा ने बताया कि भगवान गजानन की इको फ्रेंडली प्रतिमा बनाने के दौरान वे उसमें किसी प्रकार के केमिकल्स का भी उपयोग नहीं कर रहीं हंै। अर्चिता मूर्ति तैयार करने के दौरान दो चीजों का ध्यान रखती है। पहला पवित्रता का और दूसरा यह कि मूर्ति से लोगों का हमेशा लगाव बना रहे।
अर्चिता 4 साल से बना रहीं ‘इको फ्रेंडली’ गणेश, विसर्जन के बाद प्रतिमा ले लेती है पौधे का रूप
मूर्ति के अंदर किसी न किसी पौधे का बीज वे जरूर डालतीं हंै ताकि लोग अगर विसर्जन करें तो बीज पौधे कहीं न कहीं पौधे का रूप ले ले। इससे पर्यावरण को बचाने में मदद मिलेगी।

नि:शुल्क देती हंै प्रतिमा
अर्चिता मूर्ति तैयार करने के बाद उसे लोगों को नि:शुल्क प्रदान करतीं हंै। अब तक 50 से अधिक प्रतिमा बनाकर वे लोगों को दे चुकी हैं। अर्चिता का कहना है कि भगवान को नहीं बेचा जा सकता है।
पर्यावरण बचाना उद्देश्य है। मिट्टी की मूर्ति (Lord Ganesha) बनाने का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण को संरक्षित करना है। इंसान पर्यावरण के साथ काफी खिलवाड़ कर चुका है और कर भी रहा है। अपने छोटे-छोटे प्रयासों से हम इसे बचा सकते हैं।

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