Divyang Lucky story: सडक़ पर सरपट दौड़ती है लक्की की ट्राईसाइकिल, दिव्यांगता अब नहीं आती आड़े
Divyang Lucky story: प्रशासन द्वारा दिव्यांग लक्की कंसारी को प्रदान की गई थी ट्राईसाइकिल, पिता का कहना- अब बेटे को स्कूल समें कहीं भी आने-जाने में नहीं होती है दिक्कत
अंबिकापुर. अंबिकापुर के गांधी नगर में रहने वाले दिनेश कंसारी साइकिल में घूम-घूम कर बर्तन बेचते हैं। दिनभर गली-मोहल्लों में घूमने के बाद जो आय होती है, यही उनके आजीविका का साधन है। दिनेश कंसारी बताते हैं कि उनके एक पुत्र एवं एक पुत्री हैं। पुत्र कक्षा आठवीं और पुत्री कक्षा चौथी में पढ़ती हैं। उन्होंने बताया कि पुत्र लक्की (Divyang Lucky story) को बचपन से ही चलने-फिरने में समस्या होती थी। लेकिन अब वह प्रशासन द्वारा प्राप्त ट्राईसाइकिल पर चलता है।
दिनेश कंसारी ने बताया कि चलने-फिरने में समस्या देख वे लक्की को लेकर अंबिकापुर के लगभग हर अस्पताल में गए। यहां तक कि सगे-संबंधियों के कहने पर लक्की (Divyang Lucky story) को रांची भी लेकर गए। तब पता चला कि यह समस्या आजीवन रहेगी, इसका इलाज सम्भव नहीं है।
अपने छोटे से बच्चे को इस स्थिति में देखकर हृदय कांप उठता था। परन्तु धीरे-धीरे हमने इसे स्वीकार किया और जीवन में आगे बढ़े। उस समय हमने निश्चय किया कि लक्की को पढ़ा-लिखाकर हमें इस काबिल बनाना है कि उसकी ये दिव्यांगता भार ना रहे, उसे किसी पर निर्भर ना रहना पड़े।
दिनेश कंसारी ने बताया के हमने बेटे लक्की (Divyang Lucky story) का दाखिला स्कूल में करवाया। शुरुआत में स्वयं लक्की को स्कूल छोडऩे जाता था। जब हमें शासन की दिव्यांग सहायक उपकरण वितरण योजना के बारे में जानकारी मिली, तो मैंने बैटरी चलित ट्राईसाइकिल के लिए आवेदन दिया।
लक्की को अक्टूबर 2024 में ट्राईसाइकिल मिली। उन्होंने बताया कि अब लक्की स्वयं अपने दैनिक कार्य, स्कूल आना-जाना स्वयं कर लेता है।
प्रशासन का जताया आभार
लक्की अपनी ट्राइसिकल (Divyang Lucky story) चलाते हुए बताते हैं कि मेरी ट्राइसिकल अच्छी चलती है। मैं इसी में बिना किसी की मदद से स्कूल जाता हूं। पढऩा मुझे अच्छा लगता है। पढ़-लिखकर भविष्य में कुछ अच्छा करना चाहता हूं और अपने माता-पिता का नाम रोशन करना चाहता हूं।
पिता दिनेश ने कहा कि मुझे बहुत खुशी है कि शासन ने ट्राइसिकल के रूप में पुत्र को सहारा दिया। इसके लिए उन्होंने शासन-प्रशासन का आभार जताया।
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