पत्रिका टीम वार्ड की तरफ जाने वाली गैलरी में पहुंची तो जांच केन्द्र से थोड़ा आगे विश्राम स्थल में नीचे कबाड़ रखा हुआ था, जिसके ऊपर तिरपाल लगा रखा था। यहां पिछले कई वर्षों से मरीजों के परिजन घर से कंबल और रजाई लाकर सोते रहे हैं। यहां तो सोने की जगह नहीं बची तो मजबूरन उन्हें सर्दी में गैलेरी में हवा में ही रात गुजारनी पड़ रही थी।
राजकीय अस्पतालों में वैसे तो मरीज बाहर सोते हुए मिल जाते हैं लेकिन यहां विश्राम स्थल को इस काम में लिया जाता है। मरीजों की परेशानी को यह विश्राम स्थल कम करता है। इन दिनों इसमें कबाड़ भरकर मरीजों के आराम करने की जगह का यह हाल कर दिया है। जिससे मरीज मजबूरन गैलरी में सोने को मजबूर हैं। ऐसे मरीजों का मानना है कि अस्पताल से बाहर सोने पर उनके मरीज को होेने वाली दिक्कत का पता नहीं लग सकेगा। कुछ गरीब लोग बाहर धर्मशाला में रुकने के बजाए यहां रात में फर्श पर ही समय व्यतीत करते दिखाई दिए।
अस्पताल प्रशासन विश्राम स्थल से कबाड़ हटवाकर अन्यंत्र स्थानांतरित करे तो यह जगह मरीजों के रात्रि विश्राम के काम आ सकती है और दूर दराज से आने वाले मरीज के परिजनों की समस्या दूर कर सकती है। इस बारे में मरीजों ने बताया कि हम विश्राम स्थल पर सोने के लिए गए लेकिन वहां अब जगह खाली नहीं है। यहां अस्पताल कर्मचारियों का व्यवहार अच्छा है जो हमें गैलरी में सोते समय परेशान नहीं करते।
रात में ट्रोमा सेंटर पर नर्सिंग कर्मचारियों की संख्या कम मिली, लेकिन यहां व्यवस्था बेहतर थी। यहां मरीज के आते ही उसका इलाज शुरू करने में देरी भी नहीं हो रही थी जबकि मरीज के साथ वाले बाद में पर्ची बनवाकर लाते दिखे। यहां मरीज के आते ही चिकित्सक को ही तत्काल बुला कर लाया गया और इससे पहले ही इलाज शुरू कर दिया।
कुछ कमरें टूट गए हैं जिनका रिकार्ड सामने ही विश्राम स्थल में रख दिया है। इन कागजों की लिस्टिंग कर हम कागजों को दूसरी जगह रखेंगे। हम मरीजों की समस्या का पूरा ख्याल रख रहे हैं। यह काम कुछ ही दिनों में पूरा हो जाएगा।