उधर विक्रम अपने अग्रज महाराजा भर्तृहरि को क्रूरसिंह व पिंगला के प्रेम प्रसंग के बारे में बताता है जिस पर पिंगला विक्रम पर ही खुद पर कुदृष्टि डालने का लांछन लगाती है । महाराजा भर्तृहरि गृह क्लेश में उलझ कर अपनी प्रियतमा पत्नी के विक्रम पर लगाए आरोप के कारण विक्रम को राज्य की सीमा से बाहर जाने का आदेश देते हैं । तदुपरान्त राजा भर्तृहरि के दरबार मे मोहिनी उन्हें वह अमरफल प्रदान करती है व पूरा वृतान्त बताती है । महाराजा भर्तृहरि प्रेम में धोखा खाने पर विक्रम को राज्य सौंप कर वैराग्य धारण कर लेते हैं। “भिक्षा देदे मैया पिंगला” के उस मार्मिक दृश्य को देख उपस्थित हजारों भर्तृहरि के भक्त दर्शक आंसू पोंछते नजर आते हैं । अंत में महाराजा भर्तृहरि अरावली की श्रंखला में स्थित अलवर की तपोभूमि सरिस्का में समाधिस्थ हो जाते हैं।
राजा भर्तृहरि की भूमिका समीर तिवाडी, मत्स्येन्द्र नाथ सौरभ खंडेलवाल,विक्रम की भूमिका मोहन शर्मा, गोरखनाथ की भूमिका बाबूलाल सैनी, पिंगला की भूमिका मीनाक्षी चौहान, मोहिनी की भूमिका नंदिनी, विद्यासागर की भूमिका केशवदेव,मायादास की भूमिका अशोक शर्मा,तेली की भूमिका गजेंद्र उपाध्याय,चंद्रशेखर शास्त्री की भूमिका,केशव सिंह,फरियादी की भूमिका संजय खुराना ने निभाई। इसके अलावा नाटक में विशेष आकर्षण चलता-फिरता सिंहासन और घूमता हुआ मंच व बेताल के दृश्य ने सभी दर्शकों का ध्यान खींचा। गायन दीपक खंडेलवाल व दीपा सैनी का रहा। जबकि मंच संचालन शिवचरण कमल ने किया।