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श्राद पक्ष 2018 : अब धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं कौए, पितरों तक कैसे पहुंचेगाा भोजन

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अलवरOct 01, 2018 / 06:00 pm

Hiren Joshi

Shradh 2018: Very Less numbers of Crow remaining In Alwar

श्राद पक्ष 2018 : अब धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं कौए, पितरों तक कैसे पहुंचेगाा भोजन

अलवर. कौए का कांव कांव करना हम सबको बुरा लगता है यदि अधिक देर तक कांव कांव करता है तो हम उसे छत की मुंडेर से भगा देते हैं। लेकिन श्राद्ध पक्ष में जब कौए की कांव कांव सुनाई देती है तो तुरंत दौड़ कर पहुंच जाते हैं । पितर पक्ष के दिनों में यह कौआ बहुत प्रिय लगने लगता है। सामान्य भाषा में इसे कागला कहा जाता है। पहले बहुत बड़्ी संख्या में कौए दिखाई देते थे शाम होते ही पेड़ों पर झंूड के झूंड आकर बैठ जाते थे। लेकिन अब बहुत ढूंढऩे पर भी कौए दिखाई नहीं दे रहे हैं। पितर पक्ष में कौए की कांव कांव सुनने के लिए कान तरस गए हैं। शास्त्रों की मानें तो कौए को भोजन दिए बिना पितर भोजन ग्रहण नहीं करते हैं।
ऐसे में अब कौए को श्राद्ध का भोजन देना मुश्किल हो गया है। श्राद्ध करने वाले लोगों ने बताया कि अब तो छत की मंूडेर पर या किसी पेड़़ के नीचे कौए की निमित्त श्राद्ध का भोजन रख दिया जाता है।
इको सिस्टम के बिगडऩे से खत्म हो रहे हैं कौए

जीव विज्ञान के विशेषज्ञ डा. के के बांगिया ने बताया कि हमारा इको सिस्टम बिगड़ गया है। इससे फुड चैन का नेटवर्क बिगड गया है। हम कुछ भी खा रहे हैं उसमें रासायनिक तत्वों की भरमार है । खानपान में पेस्टीसाइड, फर्टिलाइजर की मात्रा बहुत ज्यादा हो गई है। पशु पक्षी भी ये सब खा रहे हैं। इससे उनकी प्रजनन क्षमता कम होती जा रही है। कौआ सर्वहारी जीव माना जाता है , जो कि शाकाहारी व मांसाहारी होता है। जब मादा कौआ रसायन से बने खाद्य पदार्थो को खाती हैं तो उनके अंडे का कवच कमजोर हो जाता है। क्योंकि इसमें कैल्शियम की मात्रा कम होती है। जब अंडे निकलते हैं तो वे टूट जाते हैं ओर बच नहीं पाते हैं। पक्षियों को रहने के लिए पेड़ मिलना मुश्किल हो गया है। जीवों को घौंसले बनाने के लिए जगह नहीं मिल पाती हैं। कौए लगातार कम होते जा रहे हैं। इसके अलावा एक कारण यह भी है कि गाय या अन्य आवारा पशु पॉलिथिन वगैरह खाते हैं जिससे उनके शरीर में जहर पहुंचता है। इनके मरने पर कौआ जब इनको खाता है तो यह जहर उनके शरीर में पहुंच जाता है। वह भी मर जाता है। इससे संख्या लगातार कम होती जा रही है।
कौए का धार्मिक महत्व, पितृ का प्रतीक है कौआ

पंडित यज्ञदत्त शर्मा बताते हैं कि पुराणों ग्रंथों व महाकाव्यों में कौए को यमराज का दूत माना गया है। इसे पितरों का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि कौआ कभी भी अकेले भोजन नहीं करता है वह हमेशा अपने साथी के संग मिल बांटकर ही भोजन करता है। पुराणों के अनुसार कौए को पितरों का आश्रमस्थल माना जाता है। कौए और पीपल को पितृ का प्रतीक माना जाता है। इसलिए श्राद्ध पक्ष में कौए को खाना खिलाकर एवं पीपल को जल चढ़ाकर ही पितरों को तृप्त किया जाता है।

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