- गेङ्क्षमग डिवाइस को बेडरूम और डायङ्क्षनग रूम से दूर रखें।
- सोने से कम से कम 3 घंटे पहले मोबाइल को बंद कर दें।
- अनुपयोगी ऐप्स को मोबाइल से हटा दें। सोशल मीडिया से ब्रेक लें।
- व्यस्त रहें, योगा, मेडिटेशन, व्यायाम और खेलों को दिनचर्या में शामिल करें।
- अपनी पसंद की नई चीजें सीखने पर ध्यान और दोस्तों व परिवार को समय दें।
सामान्य अस्पताल के मनोरोग विभाग में एक महिला अपने 10 वर्षीय बेटे को लेकर आई। उसने चिकित्सकों को बताया कि बेटा पढ़ाई में अच्छा है, लेकिन रात को नींद में उठकर मोबाइल ढूंढता है और मोबाइल-मोबाइल चिल्लाता है। उससे मोबाइल लेते हैं, तो चीखना-चिल्लाना शुरू कर देता है। एक माह से फ्री फायर गेम खेलता है।
केस-2
शहर की कोङ्क्षचग में पढ़ रहे 14 वर्षीय छात्र के परिजनों ने चिकित्सकों को बताया कि बेटे की पढ़ाई अच्छी चल रही थी, लेकिन 6 महीने से एकांत में अधिक रहने के साथ चिड़चिड़ा हो गया। उसके मन में भी भद्दे विचार आने लगे। परिजनों ने चिकित्सकों को बताया कि वह 6 महीने से ऑनलाइन गेम खेल रहा है।
केस-3
शहर निवासी 16 वर्षीय बच्चे के माता-पिता ने बताया कि उनका बेटा मोबाइल पर ऑनलाइन गेम खेलता है। उसके व्यवहार में भी परिवर्तन आ गया है। बच्चे के पिता स्वास्थ्य कर्मी हैं। उन्होंने बताया कि बच्चे को मोबाइल पर गेम खेलने से मना करते हैं, तो वह मारने-पीटने पर उतारू हो जाता है। इसके अलावा मोबाइल के बिना खाना-पीना भी छोड़ देता है।
केस-4
शालीमार निवासी एक महिला ने बताया कि उसका 8 वर्षीय बेटा कुछ दिनों से उनकी बात नहीं मानता। स्कूल जाने के लिए कहते हैं तो आक्रामक हो जाता है। उसको प्यार से भी समझाया, लेकिन कोई बात नहीं बनी। परिजनों ने बताया कि बच्चा करीब एक माह से मोबाइल पर गेम खेल रहा है।
ऑनलाइन गेङ्क्षमग के कारण बच्चे मानसिक रोगों के शिकार हो रहे हैं। वर्तमान में स्कूल व कोङ्क्षचग के पाठ्यक्रम से जुड़ी बहुत सारी चीजें ऑनलाइन मिलती हैं। इस कारण बच्चों को पढ़ाई के बहाने बच्चों को एंड्रॉयड फोन और टैब आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं। स्क्रीन पर ज्यादा समय देने से बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। दूसरा बड़ा कारण बच्चों का एकाकीपन है। शारीरिक खेलों में रुचि नहीं लेना व परिजन का बच्चों को समय नहीं दे पाना भी बड़ा कारण है।
डॉ. प्रियंका शर्मा,
वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ, सामान्य अस्पताल।