मंदिर की परिक्रमा व गृभगृह में स्थित भगवान जगन्नाथ की दो कृष्णवर्णी आदम कदम प्रतिमाएं हैं। इन प्रतिमाओं में से एक चंदन की लकड़ी से निर्मित चल प्रतिमा है। इसके ठीक पीछे ठोस धातु से निर्मित अचल प्रतिमा है। अचल प्रतिमा को बूढ़े जगन्नाथ जी के नाम से जाना जाता है। जब भगवान जगन्नाथ जानकी मैया को ब्याहने रूपबास जाते हैं तो तभी इस अचल प्रतिमा के दर्शन भक्तों को कराए जाते हैं।
मंदिर में प्रतिवर्ष मेले का आयोजन किया जाता है। आषाढ़ शुक्ला नवमी से लेकर त्रयोदशी तक आयोजित इस वार्षिक मेले में अलवर के अलावा देश भर से श्रद्धालु दर्शनों के लिए आते हैं। यह मेला भगवान जगन्नाथ व जानकी मैया के विवाह उत्सव के रूप में आयोजित होता है।
प्रतिवर्ष निकलने वाली जगन्नाथ रथयात्रा में इंद्र विमान रथ का उपयोग किया जाता है जिसे पहले चार हाथी खींचते थे। लेकिन अब कुछ सालों से ट्रैक्टर से रथ को खींचा जाने लगा है। रथयात्रा में प्रयोग आने वाले ट्रैक्टर की पहले से ही बुकिंग हो जाती है। इतिहासकार हरिशंकर गोयल बताते हैं कि भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में काम में आने वाले इंद्र विमान रथ का तिजारा ( अलवर ) के महाराजा बलवंतसिंह की ओर से 1826 से 1845 तक तिजारा में राजकीय सवारी में प्रयोग होता था।
रथ में दो मंजिलें बनी हुई है। पहली मंजिल में प्रमुख लोगों के बैठने की जगह होती है और काम आने वाली आवश्यक सामग्री रखी जाती है। दूसरी मंजिल पर यानी ऊपर की तरफ महाराजा बलवंत सिंह स्वयं विराजते थे। लाल मखमल के चौकोर गद्दे और उस पर सुर्ख मखमल की मसंद लगाई जाती थी। ऊपरी भाग को झालरों से सजाया जाता है। झीने पर्दो से सजे हुए इंद्र विमान की छतें तीन गोल गुंबज के रूप में बांटी गई हैं। रथ में ऊपर जाने के लिए पहली और दूसरी मंजिल पर सीढियां भी बनी हुई हैं। इंद्र विमान में हाथियों को हांकने वाले महावतों के स्थान भी बने हुए हैं। अलवर रियासत के पूर्व महाराज जयसिंह के समय से पहले इंद्र विमान त्रिपोलिया का चारों तरफ चक्कर लगाकर शहर महल को जाता था।