अमर सिंह यादव, कन्हैयालाल सैनी, रमेश चंद सैनी, सूरज राम मीणा, प्रभु दयाल सहित अन्य किसानों ने बताया कि परंपरागत खेती में लागत, मेहनत अधिक होने लगी है। इसलिए उस खेती से मोह भंग हो रहा है। सब्जी की फसल का उत्पादन तथा भाव सही मिलने से आर्थिक संपन्नता हासिल कर उन्नति पर परिवार चल रहा है।
एक बीघा में 1500 रुपए पौध पर खर्च बैंगन की बुवाई से पहले पौध तैयार की जाती है। जहां एक बीघा में 1500 रुपए पौध पर खर्च करना पड़ता है। इसके साथ ही गोबर की खाद उर्वरक, जुताई, निराई, गुड़ाई तथा कीट नाशक दवा छिड़काव पर भी खर्च किया गया है, जो बैंगन की रोज की बिक्री से हो रही आय में से ही चुकारा कर आमदनी हो रही है। इस बार बारिश लगातार होने से इस फसल में मानसून के दौरान सिंचाई नहीं करनी पड़ी। जिससे बिजली के बिल की बचत हुई। इस बार शुरुआती दौर में बैंगन का भाव 40 रुपए प्रति किलो रहा। एक बीघा में बैंगन बुवाई पर एक दिन छोड़कर एक दिन बैंगन की तुड़ाई की गई। जहां 2 महीने में 18 क्विंटल बैंगन करीब 72000 में बेचे गए। इसके साथ ही उत्पादन अगले दो महीने में करीब 45000 के बैंगन बेचने से आम आदमी प्राप्त हुई।
भुगतान नकद हासिल हो जाता है सब्जी पालक किसानों का कहना है कि आखिरी के दो महीना में 16 क्विंटल के करीब उत्पादन हुआ। जिससे 40000 की आमदनी हुई। इस प्रकार एक बीघा में किसान औसतन 1 लाख 10,000 से लेकर सवा लाख रुपए प्रति बीघा 6 महीने में आर्थिक समृद्धि हासिल कर रहे हैं। मालाखेड़ा स्थित फल सब्जी मंडी में सब्जी का उत्पादन होने पर बिक्री की जाती है। जहां नकद भुगतान हासिल हो जाता है।
बैंगन की खेती के प्रति रुझान बढ़ रहा है उप निदेशक उद्यान विभाग, केएल मीणा का कहना है कि परंपरागत खेती में लाभ नहीं मिलने के कारण लोगों का बैंगन की खेती करने के प्रति रुझान बढ़ रहा है। साथ ही अब बैंगन की दूसरी खेप भी खेतों में लगाई गई है, जो सर्दियों तक चलेगी। अधिकतर किसानों को जैविक सब्जी लगानी चाहिए, जो स्वास्थ्य वर्धक साबित होगी।