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लातेहार में शहीद हुआ था इलाहाबाद का ये लाल, नक्सलियों ने पेट फाड़कर लगाया था 10 KG का बम

बचपन से ही था शहीद का आर्मी में भर्ती होने का सपना

प्रयागराजJan 29, 2018 / 02:24 pm

sarveshwari Mishra

Martyr Babulal Patel

शहीद बाबूलाल पटेल

वाराणसी. भारत की आजादी के लिए एक इलाहाबाद के लाल शहीद हो गया था। जिसे 7 जनवरी 2013 को झारखंड के लातेहार में नक्सलियों ने पेट फाड़कर बम डालकर मार डाला था।


6 साल तक किया था देश की सेवा
गंगापार के नावबंगज थानाक्षेत्र स्थित मलाक बलऊ गांव के सीआरपीएफ जवान बाबूलाल पटेल की शहादत के 5 साल हो गए। शहीद मां जगपती देवी और पिता मुन्नीलाल पटेल की इकलौती संतान था। 2006 में सीआरपीएफ में भर्ती हुआ। पड़िला से नक्सल प्रभावित इलाके में उसकी पोस्टिंग हुई । लगभग 6 साल तक वीरता के साथ देश सेवा की। 7 जनवरी 2013 को झारखंड के लातेहार में नक्सलियों ने हमला कर दिया। इकलौते बेटे के पार्थिव शरीर देखते ही उसकी मां टूट गई। ऐसा लगा कि हाथ से जीवन ही फिसल गया हो।
शहीद का पेट फाड़कर लगाया गया था 10 Kg का बम
मलाक बलऊ गांववालों के लिए 28 दिसंबर 2016 की सुबह दशहत भरी थी। झारखंड के लातेहार के कटिया जंगल में नक्सलियों ने हमला किया। इसमें 13 जवान शहीद हुए, जिसमें बाबूलाल पटेल भी शामिल थे। नक्सलियों ने बाबूलाल की हत्या के बाद उनके पेट में 10kg बम प्लांट किया। उनका प्लान था कि पोस्टमॉर्टम के दौरान भारी विस्फोट कर कई लोगों को मौत के घाट उतार सके। लेकिन सुरक्षा एजेंसियों ने इसे नाकाम कर दिया।
बचपन से फौज में जाना चाहता था बाबूलाल पटेल
शहीद की मां ने बताया कि वह बचपन से ही पढ़ने में तेज-तर्रार था। हाईस्कूल पास करते ही फौज की नौकरी के बारे में बात करता था। पढ़ाई के साथ ही वह सेना में जाने की तैयारी करने में लगा रहता था। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के बाद भी, सीआरपीएफ में भर्ती होने का सपना पूरा किया। उसे बचपन से ही शहीदों की कहानी सुनना पसंद था। लोग अब शहीद की मां के नाम से बुलाते हैं। यह सुनकर आंखों में आंसू आ जाते हैं।
चाहता था ‘पापा’ कहकर बुलाए संतान
साल 2008 में रेखा से शहीद की शादी हुई थी। पत्नी ने पति की शहादत के 6 महीने बाद 2 जुलाई 2013 को बेटे अंश को दिया, जो अब साढ़े 4 साल का हो गया है। शहादत से 15 दिन पहले ही पत्नी रेखा ने पति को प्रेग्नेंसी के बारे में बताया था। तब वो बहुत खुश हुए थे, उनका सपना था कि उन्हें उनकी सन्तान पापा कहकर बुलाए।
इसलिए मनाया जाता है आर्मी डे
भारत में हर साल 15 जनवरी आर्मी डे के रूप में मनाया जाता है। लेफ्टिनेंट जनरल (बाद में फील्ड मार्शल) के. एम. करियप्पा के भारतीय थल सेना के मुख्य कमांडर का पदभार ग्रहण करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। उन्होंने 15 जनवरी 1949 को ब्रिटिश राज के समय के भारतीय सेना के अंतिम अंग्रेज शीर्ष कमांडर (कमांडर इन चीफ, भारत) जनरल रॉय बुचर से ये पदभार ग्रहण किया था। इस दिन उन सभी बहादुर सेनानियों को सलामी भी दी जाती है।

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