पर अदालत और सरकार दोनों अलग हैं। हाईकोर्ट का यह सिर्फ एक मामला था, जिसे आधार बनाकर कोई राय कत्तई नहीं कायम की जा सकती। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले एक महीने में अंतर-धार्मिक या अंतर-जातीय विवाह के 120 जोड़ों को सुरक्षा दी है। न सिर्फ उन्हें संरक्षण दिया है बल्कि उनकी स्व्तंत्रता की भी रक्षा की है। 117 मामलों में वरष्ठि पुलसि अधीक्षकों को उन जोड़ों की शिकायतों पर कार्रवाई करने को कहा जो अलग-अलग धर्म या जातियों से थे। उनकी जान और स्वतंत्रता को अपनों से ही खतरा था। कोर्ट ने इन मामलों में एक तरफ तो एसएसपी से संपर्क करने की अनुमति दी और दूसरी ओर एसएसपी को भी व्यस्कता व विवाहा आदि से जुड़े तथ्यों की पड़ताल और सत्यापित करने के बाद कानून के मुताबिक कार्रवाई का निर्देश दिया। इनमें से कई मामलों में धर्म परिवर्तन भी किया गया था।
यही नहीं हाईकोर्ट ने पिछले महीने कम से कम 12 ऐसे मामलों को भी खारिज कर दिया जिनमें 366 के तहत पुरुष साथी पर अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया गया था। इनमें धर्मिक रूपांतरण से जुड़े मामले भी शामिल थे। इनमें यह भी देखा गया कि दोनों बाकायदा जोड़े के रूप में रह रहे थे। ऐसा प्रायः देखा भी जाता है कि अंतर-जातीय या अंतर-धार्मिक प्रेम विवाहों के कई मामलों में परिवार प्रेमी जोड़ों के फैसले से असंतुष्ट रहते हैं। कई बार पुरुष साथी के खिलाफ महिला का अपहरण करने की शिकायत भी दर्ज करा दी जाती है।