पुष्कर की पुरानी हलवाई गली और आसपास के इलाकों में मालपुए की बरसों पुरानी दुकानें हैं। यहां के मैदा, रबड़ी के मालपुए अपने स्वाद और महक के कारण समूची दुनिया में मशहूर हैं। हलवाई और व्यापारी मालपुए भारत सहित विदेशों में भी सप्लाई करते हैं। पुष्कर में गर्मागर्म मालपुए खाने का अपना ही मजा है। कई विदेशी पर्यटक और देशी सैलानी-श्रद्धालु यहां आकर मालपुए खाए बिना नहीं जाते हैं। करीब 200 वर्षों से यहां मालपुए बनाए जा रहे हैं, लेकिन स्वाद में कोई तब्दीली नहीं आई है।
धार्मिक और पौराणिक मान्यता तीर्थगुरू होने से सैकड़ों लोग प्रतिवर्ष पुष्कर में अपने मृत परिजनों की अस्थियां सरोवर में समर्पित करने आते हैं। यहां विभिन्न घाटों पर पूजा-अर्चना कराई जाती है। धार्मिक और पौराणिक मान्यता के अनुसार अस्थि विसर्जन और पूजन के बाद हरा चारा, भोजन का लोग दान-पुण्य करते हैं। इसके अलावा यहां बैठकर मालपुए और अन्य पकवान खाकर मुंह मीठा करने की परम्परा भी है। कई लोग इसे बरसों से निभा रहे हैं।
गुर्जर जाति करती अंतिम संस्कार गुर्जर जाति में किसी की मृत्यु होने पर लोग शवयात्रा के साथ पुष्कर पहुंचते हैं। यहां कई वर्षों से गुर्जर जाति के लोग अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार की परम्परा निभाते आ रहे हैं। आसपास के गांवों-शहरों, कस्बों के लोग तो आज भी शवयात्रा के साथ पुष्कर ही पहुंचते हैं। गुर्जरों के अराध्य देव भगवान देवनारायण की पुष्कर और
अजमेर के बीच नाग पहाड़ में गहरी आस्था रही है। आज भी लोग नाग पहाड़ पर उनकी ईंटों की पूजा करने जाते हैं।
साफ बांधने की रोचक प्रतियोगिता मेला मैदान में विदेशी पर्यटकों की साफा बांधने की प्रतियोगिता काफी रोचक होती है। इस बार मेले में भी राजस्थानी परम्परा को कुछ ही मिनटों में समझते हुए सबसे पहले पौलेंड की जुआना ने अपने साथी जर्मन के निकोलस के साफा बांधा। उन्होंने ललाट पर तिलक लगाया, कलाई पर मोली बांधी तथा सिर पर राजस्थानी साफा बांधा। प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाले अन्य 14 जोड़ों में भी उत्साह देखने को मिला। जर्मन के निकोलस के साफा बांधने पर पोलेंड की जुआना को पहला इनाम मिला। यू. के. के स्टीम डेनियल और जेन लोनी की जोड़ी दूसरे तथा आस्टे्रलिया के डोम व टीफ की जोड़ी तीसरे स्थान पर रही। प्रतियोगिता में 14 पुरुष विदेशी प्रतिभागी कुर्सियों पर बैठ गए। इनके पीछे उनकी महिला साथी खड़ी हो गई। उसे पुरुष साथी के हाथ में रखी थाली में से सबसे पहले तिलक लगाना था। मोली बांधकर साफा बांधना था। समय शुरू होने के साथ ही सभी महिलाओं में सबसे पहले साफा बांधने की होड़ सी मच गई। पत्रिका से बातचीत में निकोलस ने कहा कि इट इज वैरी एक्सीलेंट, वंडरफुल आई फील वैरी हैप्पी एंड माई फे्रंडस।
मूछों पर ताव देकर इतराए मुच्छड़ यहां मुच्छड़ों की प्रतियोगिता भी होती है। पुष्कर मेले में मुच्छड़ों ने अपनी मूंढ सर्वश्रेष्ठ बताने का प्रयास किया। एक के बाद एक मुच्छड़ को देख विदेशी पर्यटकों ने ठहाके लगाए। महिला पर्यटकों ने तो मुच्छड़ की लम्बी मूछें अपने नाक के नीचे लगाकर फोटो भी खिंचवाए। पर्यटन विभाग की ओर से मुच्छड़ प्रतियोगिता आयोजित की गई। इसमें विदेशी सहित 11 मुच्छड़ों ने हिस्सा लिया। समय शुरू होने के साथ ही एक-एक मुच्छड़ उठा तथा अपनी मूछों के बट देने लगा। प्रतियोगिता में नागौर जिले के झाड़ोद गांव निवासी जगदीश चौहान ने जब सिर के बांधी 17 फीट लम्बी मूछें खोलीं तो तालियों की गडगड़़ाहट सुनाई दी। जगदीश ने दोनों हाथों से रस्सी की तरह अपनी मूछों को पकड़ा तथा लटकाकर प्रदर्शन किया। इसमें प्रथम घोषित किया गया। दूसरे स्थान पर पाली के मेलावास गांव निवासी राजसिंह और तीसरे स्थान पर अजमेर के मोहन सिंह उर्फ रावण रहे।
रेतीले मैदान में क्रिकेट का लुत्फ पुष्कर के रेतीले मैदान में क्रिकेट मैच भी होते हैं। यहां देसी व विदेशी पर्यटकों के बीच लगान मैच की तर्ज पर क्रिकेट मैच खेला गया। इसमें पहले स्थानीय खिलाडिय़ों में बैटिंग की। तिलोरा के मनीष पाराशर ने धुआंदार बल्लेबाजी करते हुए 47 रन बनाए, वहीं मुकेश ने 37 व रवि तेजी ने 32 रन का योग्दान किया। देसी खिलाडिय़ों की टीम ने निर्धारित ओवर में 193 रन बनाए। जवाब में खेलने उतरी विदेशी खिलाडिय़ों की टीम निर्धारित ओवर में कुल 135 रन ही बना सकी।