अजमेर के ब्रह्मपुरी एवं इंडिया मोटर चौराहे के पास चन्दनदास (40) जन्म से ही लकवाग्रस्त है। हाथ मुड़े हुए, पैरों से चलने में असमर्थ और बोलने में भी कुछ परेशानी। ऐसी शारीरिक विषमताओं व दुश्वारियों के बावजूद चेहरे पर हमेशा मुस्कान। परिवार भी खस्ताहाल। इस परेशानी और मजबूरी के बावजूद उसने हिम्मत नहीं हारी और सरकारी मदद से मिली ट्राईसिकल को ही आमदनी का जरिया और खुद के हौसलों की उड़ान बना ली।
चन्दनदास ने बताया कि जन्म से ही लकवा होने से चलने-फिरने में परेशानी हो रही थी। फिर सोचा मैं क्यूं ना कोई काम कर लूं। जब ट्राईसिकल मिली तो रोजाना इस पर ही गोली-बिस्किट, सुपारी के अलावा पेन, पेन्सिल आदि बेचना प्रारंभ कर दिया। अब प्रतिदिन 200-250 रुपए मिल जाते हैं, जिससे गुजारा हो रहा है।
नि:शक्त चंदनदास के साथ परिवार का एक बच्चा भी कभी-कभार उसके साथ आता है जो चढ़ाई होने पर ट्राईसिकल को पुश कर उसकी सहायता करता है। जुनून और खुद्दारी की मिसाल. . .
नि:शक्त व लकवाग्रस्त चन्दनदास की जिन्दगी मुंह बोलती किसी किताब से कम नहीं। शहर में कई स्वस्थ युवा-महिलाएं-बच्चे मेहनत व काम करने के बजाय भीख मांगकर जीवनयापन करते देखे जा सकते हैं। ऐसे लोग घर-परिवार के साथ समाज पर भी बोझ हैं। उनके बीच चंदनदास जुनून की मिसाल है जिसकी जिंदगी से सबक लिया जा सकता है।