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अजमेर

अजमेर की रही ओगल्वी फुटबॉल से पहचान

शहर से जुड़े सीनियर फुटबॉलर्स को मैदान और कोच की कमी बरसों से खलती रही है, हालांकि अब वे इसे लेकर पूरी उम्मीद है

अजमेरNov 21, 2022 / 03:08 am

dinesh sharma

अजमेर की रही ओगल्वी फुटबॉल से पहचान

अजमेर की रही ओगल्वी फुटबॉल से पहचान

अजमेर.

रविवार से फीफा वर्ल्डकप 2022 शुरू होने के साथ ही फुटबॉल के दीवानों का जुनून भी जोश मारने लगा है। लोगों ने अपने इर्द-गिर्द बीते जमाने में खेली गई फुटबॉल और शहर में मौजूदा दौर में खेल की सुविधाओं और हालात को भी जिक्र और किस्सों में शामिल कर लिया है।
किसी जमाने में अजमेर की पहचान भी देश की नामचीन फुटबॉल प्रतियोगिता से रही है, जिसका आयोजन शहर में काफी लंबे समय तक किया जाता रहा। शहर से जुड़े सीनियर फुटबॉलर्स को मैदान और कोच की कमी बरसों से खलती रही है, हालांकि अब वे इसे लेकर पूरी उम्मीद है।
पटेल मैदान रहा साक्षी

पटेल मैदान ओगल्वी फुटबॉल टूर्नामेंट का बरसों तक साक्षी रहा है। ब्रिटिश शासन में लेफ्टिनेंट कर्नल जी.डी. ओगल्वी के 1935 में अजमेर आगमन के बाद शुरू हुई इस प्रतियोगिता की काफी धूम थी। ओगल्वी फुटबॉल प्रतियोगिता की प्रतिष्ठा डूरंड कप के बाद भारत में जानी-पहचानी जाने वाली दूसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय फुटबॉल प्रतियोगिता के रूप में रही।
अल्लारखा थे प्रमुख आयोजक

प्रतियोगिता के प्रमुख आयोजक अजमेर के ही अब्दुल करीम अल्लारखा थे। उनके ओगल्वी परिवार से पारिवारिक रिश्ते रहे। प्रतियोगिता के मुकाबले ब्रिटिश शासन में मौजूदा जेएलएन मेडिकल कॉलेज की इमारत की जगह स्थापित तत्कालीन जिमखाना क्लब के मैदान में खेलेे जाते थे। आजादी के काफी बाद तक भी ओगल्वी टूर्नामेंट वहीं खेला जाता रहा। इसे कालांतर में मौजूदा लोको ग्राउंड में स्थानांतरित कर दिया गया।
जुटते थे 25 हजार दर्शक

टूर्नामेंट की साख ऐसी थी कि उस समय भी 20-25 हजार की संख्या में दर्शक 50 पैसे से लेकर 2 रुपए तक के टिकट खरीदकर मैच देखा करते थे। साल 1969 में अजमेर इलेवन ने एजी-जयपुर को 2-0 से हराकर ओगल्वी फुटबॉल का खिताब अपने नाम किया। अब्दुल जलील खान, खुशीराम वर्मा, मुकेश राजावत शहर के ऐसे नाम रहे हैं जिन्हें फुटबॉल से जुड़ी पीढ़ी आज भी याद करती है।
देशभर से आती थीं टीमें

इस टूर्नामेंट में देहरादून, बीकानेर, आरएसी, पंजाब पुलिस, हैदराबाद पुलिस, मोहन बागान, मोहम्मडन स्पोर्टिंग, जोधपुर व करांची तक की टीमें खेलने आया करती थीं।

क्लब फुटबॉल का भी था चलन
उस वक्त अजमेर में क्लब फुटबॉल का भी जलवा था। इसमें बालभारती, अब्दुल क्लब, रेलवे लोको वर्कशॉप और भारतीय क्लब सरीखी टीमें हुआ करती थीं।

यूं वजूद में आया पटेल मैदान

ओगल्वी फुटबॉल में दर्शकों की साल-दर-साल बढ़ती संख्या के मद्देनजर उन्हें बैठकर मैच देखने की सुविधा देने के लिए शहर में एक फुटबॉल स्टेडियम की जरूरत महसूस की गई। इसके बाद पटेल स्टेडियम को फुटबॉल मैदान के रूप में विकसित करने की राह प्रशस्त हुई। नगर में ओगल्वी फुटबॉल का आयोजन 1976 तक निर्बाध चला।
जारी रहा फुटबॉल का सिलसिला

1984 में तत्कालीन नगर परिषद के तत्वावधान में सुखाडि़या गोल्डकप फुटबॉल प्रतियोगिता। इसके चार साल बाद फुटबॉल खिलाड़ी भोला खंडेलवाल द्वारा पटेल मैदान में राज्य स्तरीय डेजिल मेमोरियल फुटबॉल प्रतियोगिता, 1990 में अखिल भारतीय लूणिया गोल्ड कप फ्लड लाइट टूर्नामेंट का पटेल मैदान में आयोजन हुआ।
इसी दौर में अजमेर के सीनियर फुटबॉलर व अब कोच की भूमिका में राष्ट्रीय खिलाड़ी शिवदत्त पाराशर सहित अन्य फुटबॉलर के लिए मैदान की समस्या को समझते हुए तत्कालीन सभापति वीरकुमार की स्वीकृति से पटेल स्टेडियम में 1997 में अखिल भारतीय फुटबॉल प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।
2005 में राज्य स्तरीय पृथ्वीराज चौहान फुटबॉल चैपियनशिप हुई। इसमें अजमेर विजेता व जोधपुर उपविजेता रही। 2016 से इसी प्रतियोगिता की फिर से शुरुआत की गई जिसमें शिवदत्त पाराशर, रणजीत मलिक के सहयोग से आयोजन का जिम्मा मौजूदा उपमहापौर नीरज जैन व पार्षद समीर शर्मा ने संभाला।
अब तैयार हो रहा पटेल मैदान

शहर में अब फुटबॉल का पुराना दौर फिर से लौटने वाला है। स्मार्टसिटी प्रोजेक्ट के तहत तैयार किया जा रहा पटेल मैदान अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप तैयार किया जा रहा है।
फिर से आएगा खुशनुमा दौर

इंडिया गर्ल्स फुटबॉल कैंप तक पहुंची और तकरीबन 15 नेशनल चैंपियनशिप खेल चुकीं अजमेर की सुनीता शर्मा को स्कूल गेम्स में फुटबॉल विलंब से जुड़ने का मलाल है। स्कूल गेम्स में फुटबॉल 2021 से ही शामिल किया गया है। पेशे से शारीरिक शिक्षक सुनीता को भरोसा है कि अजमेर में तैयार हो रहे मैदानों में फुटबॉल फिर से रुतबा कायम करेगी।
मैदानों की दूर हो कमी

1996 में इंडिया कैंप तक पहुंचे 10 बार नेशनल खेल चुके अजमेर के वरिष्ठ फुटबॉल कोच जोसवा अनल शहर में फुटबॉल के मैदानों की कमी को बड़ी बाधा मानते हैं। इनका कहना है कि कोच की कमी भी दूर होनी चाहिए। अभी तक तो सीनियर प्लेयर ही जूनियर्स को प्रशिक्षित करते आ रहे हैं।

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