हजारों छात्र-छात्राएं प्रतिवर्ष कॉलेज और विश्वविद्यालयों में स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेते हैं। इनके अलावा कई विद्यार्थी ऐसे हैं, जो व्यवस्तता, पारिवारिक और निजी कारणों से स्वयंपाठी के रूप में पढ़ते हैं। पढ़ाई का यह पारम्परिक तरीका साल 1999 से 2009-10 तक चला। हालांकि इस दौरान विद्यार्थियों ने मोबाइल का इस्तेमाल, ऑनलाइन फार्म भरने और ई-मेल जैसे तकनीक को भी अपनाया। साल 2011-12 के बाद बढ़ती तकनीक और प्रतिस्पर्धा ने विद्यार्थियों के लिए चुनौतियां बढ़ा दी। स्मार्टफोन, वॉट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर ने पढ़ाई के तौर-तरीके भी बदल दिए हैं।
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बीते पांच-छह साल में पढ़ाई और कॅरियर को लेकर छात्र-छात्राओं की सोच में बदलाव आयाहै। युवा पीढ़ी अब कॉलेज और विश्वविद्यालयों में पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी को तवज्जो दे रही है। छात्र-छात्राओं ने पहले पढ़ाई और इसके बाद कॅरियर बनाने की सोच को बदलना शुरू कर दिया है। नौजवान पारिवारिक जरूरत, अपना खर्च खुद उठाने और आर्थिक स्वावलम्बन को बढ़ावा दे रहे हैं।
कॅरियर निर्धारण जरूरी.. इंजीनियरिंग, पॉलीटेक्निक, मेडिकल, उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई के साथ नौकरी का ट्रेंड बढ़ रहा है। लडक़ों के साथ-साथ लड़कियां भी पीछे नहीं है। वे भी स्नातक अथवा स्नातकोत्तर डिग्री लेने के साथ-साथ निजी दफ्तरों, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालयों में शिक्षण कार्य अथवा ऑफिस जॉब कर रही हैं। युवाओं ने बीपीओ सेंटर, निजी केंद्रों पर कम्प्यूटर वर्क और अन्य नौकरियों को अपनाया है।
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सरकारी और निजी कॉलेज में प्रथम वर्ष में पिछले वर्ष की तुलना में कम फॉर्म आए हैं। यही वजह है, कि उच्च शिक्षा विभाग ने फार्म भरने की अंतिम तिथि नहीं बढ़ाई है। 35-40 प्रतिशत विद्यार्थियों ने तो किसी उच्च शिक्षण संस्थानों में फार्म नहीं भरे हैं। इनमें से अधिकांश सत्र 2019-20 में बतौर स्वयंपाठी परीक्षा देंगे।
फैक्ट फाइल……. देश उच्च/तकनीकी शिक्षण संस्थान
राज्य स्तरीय यूनिवर्सिटी-784 केंद्रीय विश्वविद्यालय-47
कॉलेज-40-45 हजार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-23
भारतीय प्रबंधन संस्थान-20 नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी-22
देश में अध्ययनरत विद्यार्थी-6 करोड़ 3 लाख संस्थानों में नियमित विद्यार्थी-4 करोड़, प्राइवेट विद्यार्थी-2 करोड़
(स्त्रोत-यूजीसी)