प्रदेश के खजाने भरने वाली रोडवेज के पहिए दस दिन से थमे हुए हैं। मुसाफिर हैरान-परेशान हैं। निजी संचालक उनकी जेब खाली कराने में जुटे हैं। घाटे से जूझते रोडवेज की तरफ शायद सरकार देखना भी नहीं चाहती। मंत्री-अफसर भी कर्मचारियों से वापस काम पर लौटने की अपील को एकमात्र समाधान समझे बैठे हैं। समस्या की जड़ तक पहुंचने की कोशिश नहीं हो रही। सबसे बड़ी भर्ती संस्था राजस्थान लोक सेवा आयोग भी ठप है। दूसरे महकमों की पदोन्नति, भर्तियां करने वाले आयोग के अपने हाल खराब हैं। यहां कर्मचारियों के साथ अफसर भी सामूहिक अवकाश पर हैं। पिछले दिनों परिवहन निरीक्षक, आरएएस अफसर भी नाराजगी जता चुके हैं।
सरकारी दफ्तरों के मंत्रालयिक कर्मचारियों ने भी हड़ताल का खम्भ ठोक रखा है। कहीं सातवें वेतनमान की विसंगतियां तो कहीं पदोन्नतियों-भर्तियों के मुद्दे हावी हैं। आंकड़ों के गणित से देखें तो करीब तीस हजार से ज्यादा सरकारी कर्मचारी-अधिकारी हड़ताल-धरने पर हैं।सरकार जनता के बीच जाकर पांच साल का हिसाब देने में व्यस्त है। पिछली सरकार को कोसते हुए प्रदेश में सडक़ों का जंजाल बिछाने, अस्पतालों में चिकित्सक-स्टाफ की भर्ती, सरकारी दफ्तरों, स्कूल-कॉलेज में पदोन्नतियां, नामांकन बढऩे, औद्योगिक निवेश, रोजगार सृजन और बेहतर जीवन स्तर के दावे किए जा रहे हैं। अगर सरकार के मुताबिक इतना सब हुआ है तो कर्मचारियों-अधिकारियों को नाराजगी समझ से परे है।