इनमें कई विद्वान ऐसे हैं, जिनका मूल विषय हिंदी नहीं रहा लेकिन उन्होंने हिंदी के चहुंमुखी विकास
(develpment of hindi) में अहम योगदान दिया है। उनके बूते हिंदी को राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर नई पहचान मिली। कामयाबी के शिखर (succsess) पर पहुंची प्रतिभाओं ने युवाओं को प्रतिस्पर्धात्मक युग में अंग्रेजी (english) और अन्य भाषाओं (languages) की अहमियत भी बताई पर। उन्होंने साफ किया है कि किसी भी भारतीय (indian) को हिंदी
(hindi ) माध्यम में पढऩे, बोलने अथवा लेखन से संकोच करने की जरूरत नहीं है।
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अमरीका में हिंदी सिखा रहे अजमेर के डॉ. मोक्षराज हिंदी मजबूरी नहीं मजबूतीस्कूल से विश्वविद्यालय स्तर की पढ़ाई हिंदी माध्यम (hindi medium) में की। हिंदी में एमए, एमफिल किया। आईएएस परीक्षा भी हिंदी माध्यम में दी। मैं जिस मुकाम पर हूं उसमें मातृभाषा हिंदी का योगदान है। प्रतियोगी दौर में युवाओं के लिए अंग्रेजी (english) जानना जरूरी है, लेकिन हिंदी में भी रोजगार-कॅरियर (career) ढेरों विकल्प हैं। आप हिंदी में लेखन, अध्ययन-अध्यापन और नि:संकोच बोलें। इसमें कोई शर्म या झिझक की जरूरत नहीं है।
निशांत जैन, आयुक्त एडीए read more:
पाकिस्तान को मिली अजमेर दरगाह से ललकार, जंग हुई तो देश के लिए मर मिटेंगे मुसलमान मैं मूलत: वाणिज्य का विद्यार्थी-शिक्षक रहा। लेकिन हिंदी के प्रति मेरा लगाव स्वाधीनता के प्रारंभ से रहा है। महाविद्यालय (college) और विश्वविद्यालय (university) सहित निजी जीवन में करीब 80 साल से सिर्फ हिंदी में कामकाज करता रहा हूं। हिंदी ने ही मुझे कुलपति (vice chancellor) और कुलाधिपति (chancellor) जैसे अहम मुकाम पर पहुंचाया। हमें राष्ट्रभाषा हिंदी ही भारतीयता का एहसास कराती हैं। अंग्रेजी और अन्य भाषाओं का विरोध नहीं हूं, लेकिन हिंदी की आलोचना सहन नहीं कर सकता। विकसित राष्ट्रों की चहुंमुखी विकास उनकी मातृभाषा से ही हुआ है।
डॉ. पी. एल. चतुर्वेदी, पूर्व कुलपति मदस विश्वविद्यालय read more:
अजमेर में धड़ल्ले बिक रहे प्लास्टिक कैरीबैग हिंदी हमारी राजभाषा और मातृभाषा (mother tongue) है। मैंने स्कूल से महाविद्यालय स्तर की शिक्षा हिंदी में ग्रहण की। हिंदी ने ही जीवन व्यापन का आधार दिया। राजकीय महाविद्यालय (govt college) में हिंदी में वर्षों तक अध्ययन-अध्यापन कराया। हिंदी में वार्तालाप, लेखन, संपादन, निर्देशन करने में सबको गौरान्वित महूसस करना चाहिए। यह हिंदी का आशीर्वाद है, जिसने मुझे शैक्षिक, साहित्यिक और लेखन दायित्व का अवसर दिया। यह केवल भाषा नहीं अपितु एक सभ्यता (civilization), संस्कृति (culture)और आत्मिक संबंधों का आधार है।
डॉ. बी. पी. पंचोली, सेवानिवृत्त हिंदी विभागाध्यक्ष read more:
Anant Chaturdashi: गणपति बप्पा मोरिया, अगले बरस तू जल्दी आना मैं प्रारंभ से राजनीति विज्ञान (political science) का विद्यार्थी रहा हूं। हिंदी में कॉलेज विद्यार्थी के रूप में कविता लेखन करता रहा। वास्तव में हिंदी भाषा ने मुझे कुलपति जैसे अहम पद तक पहुंचाया। पहली बार हमने विज्ञान और अन्य संकाय के पाठ्यक्रम (courses) हिंदी में बनाए। प्रशासनिक पत्रावलियों में हमने हिंदी में लेखन (writing in hindi) अनिवार्य कराया। मैं हिंदी का ऋणी हूं, जिसकी बदौलत यह मुकाम पाया। हिंदी में रोजगार-कॅरियर की कोई कमी नहीं है। आईटी के दौर में भी युवाओं को ढेरों विकल्प मिल रहे हैं। आप हिंदी को अपनाकर देखिए ये कामयाबी के द्वार स्वत: खोल देगी।
प्रो. नरेश दाधीच, पूर्व कुलपति वद्र्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय read more:
Technical education: 2020 तक लेनी होगी ग्रेडिंग, वरना नहीं मिलेगा बजट