राजस्थान विश्वविद्यालय, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर और एम.एल. सुखाडिय़ा विवि उदयपुर पर सिलेबस बनाने की अहम जिम्मेदारी है। अव्वल तो इन विश्वविद्यालयों में संकायवार सर्वाधिक विशेषज्ञ और शिक्षक हैं। अन्य विश्वविद्यालयों में संकायवार शिक्षकों के पद रिक्त हैं।
-राजस्थान विवि के अधिकांश बोर्ड ऑफ स्टडीज का कार्यकाल खत्म
-विषयवार सभी विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञों की बैठक जरूरी
-सिलेबस बनने के बाद राजभवन और उच्च शिक्षा विभाग से मंजूरी
-सिलेबस के अनुसार किताबों का प्रकाशन और वितरण
-विद्यार्थियों तक सिलेबस और किताबों की उपलब्धता
एलएलएम, हिंदी, अंग्रेजी, बीए-बीएससी बीएड, 2 और 5 वर्षीय एलएलबी कोर्स, बीपीएड और एमपीएड, बीए/एम.ए फाइन आट्र्स कोर्स, डी-फार्मा और बी-फार्मा कोर्स, फिजिक्स, केमिस्ट्री, गणित, जूलॉजी, बॉटनी, अर्थशास्त्र, कॉमर्स, इतिहास, राजनीति विज्ञान, एमसीए, बीसीए, पीजीडीसीए, एमबीए,, पर्यावरण विज्ञान और अन्य
2005 से लगातार विश्वविद्यालयों में कॉमन सिलेबस लागू करने की योजनाएं बन रही हैं। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील (तत्कालीन राज्यपाल), पूर्व राज्यपाल शीलेंद्र कुमार सिंह, प्रभा राव के कार्यकाल में कॉमन सिलेबस बनाने की चर्चा हुई। लेकिन विश्वविद्यालय खुद के कोर्स, पेपर स्कीम को श्रेष्ठ मानते हुए एकराय नहीं हो पाए।
यूजीसी ने विषयवार-संकायवार कॉमन सिलेबस तैयार किए हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालयों और कई राज्यों के विश्वविद्यालयों ने इसे अपनाया है। इनमें 70 प्रतिशत विषयों के पेपर-कोर्स समान हैं। जबकि 30 प्रतिशत पेपर-कोर्स को राज्यों के विश्वविद्यालयों ने क्षेत्रीय आवश्यकतानुसार शामिल किया है।
प्रो. पी. सी.त्रिवेदी, कन्वीनर कॉमन सिलेबस और कुलपति जेएनवी विवि