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अजमेर

Big Qusestion: 24 साल से भर्ती नहीं, सिर्फ दो कॉलेज में राजस्थानी भाषा

भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए सैकड़ों आंदोलन, धरने-प्रदर्शन हुए। इसके उलटे देखें तो जमीन पर उच्च शिक्षा क्षेत्र में राजस्थानी भाषा बेहद दयनीय हालात में है।

अजमेरSep 09, 2019 / 08:12 am

raktim tiwari

rajasthani language in colleges

rajasthani language in colleges

रक्तिम तिवारी/अजमेर.

राजस्थानी भाषा (rajasthani language) की संवैधानिक मान्यता को लेकर प्रदेश (state govt) और केंद्र सरकार () (central govt) तक आवाज पहुंची है, लेकिन जमीनी हकीकत बेहद शर्मसार करने वाली है। गुजरे 72 साल में प्रदेश में धड़ल्ले से नए कॉलेज (new colleges) खुले पर इनमें राजस्थानी भाषा के संचालन और शिक्षकों की भर्ती का ग्राफ आगे नहीं बढ़ पाया है।
राजस्थानी साहित्य-भाषा और कला एवं संस्कृति (art-culture) को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश स्तर कई प्रयास जारी हैं। भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची (constitutional list) में शामिल कराने के लिए सैकड़ों आंदोलन, धरने-प्रदर्शन हुए। इसके उलटे देखें तो जमीन पर उच्च शिक्षा (higher education) क्षेत्र में राजस्थानी भाषा बेहद दयनीय हालात में है।
दो सरकारी कॉलेज में राजस्थानी विषय!
प्रदेश में बीते 72 साल में संभाग, जिला, उपखंड और तहसील मुख्यालय तक कॉलेज खुले हैं। महज दो सरकारी कॉलेज (govt college in rajasthan) में राजस्थानी भाषा विभाग संचालित है। इनमें अजमेर का सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय और बीकानेर का राजकीय डूंगर महाविद्यालय शामिल है। कुछ निजी कॉलेज (private college) को छोडकऱ अन्य सरकारी स्नातक अथवा स्नातकोत्तर कॉलेज में राजस्थानी भाषा को नियमित विषय के रूप में नहीं पढ़ाया जा रहा है।
फैक्ट फाइल…
राजस्थान में सरकारी विश्वविद्यालय-27
किन विश्वविद्यालय में राजस्थानी भाषा विभाग-4
राजस्थान में सरकारी कॉलेज-252, निजी कॉलेज-1601
कितने सरकारी कॉलेज में राजस्थानी भाषा विभाग-2

24 साल से भर्ती भी नहीं
प्रदेश में कॉलेज व्याख्याताओं की भर्ती राजस्थान लोक सेवा आयोग (rpsc ajmer) के जरिए होती है। राजस्थानी भाषा में व्याख्याता भर्ती (lecturer recruitment) को लेकर सरकारों का रवैया उदासीन रहा है। आयोग के माध्यम से राजस्थानी भाषा में अंतिम बार भर्ती 1994-95 में हुई थी। इसके बाद कॉलेज शिक्षा (college education) में अन्य विषयों में व्याख्याता भर्ती हुए पर राजस्थानी भाषा की उपेक्षा लगातार होती रही।
विश्वविद्यालयों में दूसरे शिक्षकों पर प्रभार
विश्वविद्यालयों में भी राजस्थानी शिक्षकों का टेाटा है। कई विश्वविद्यालयों (state universities) में राजस्थानी के बजाय दूसरे विषयों के शिक्षकों के पास कार्यभार है। स्थाई शिक्षकों के बजाय गेस्ट फेकल्टी (guest faculty) कक्षाएं ले रही हैं। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय तो वर्ष 2012-13 में स्कूल ऑफ राजस्थान स्टडीज (school of rajasthan studies) बनाने का प्रस्ताव भूल चुका है। यहां 1 करोड़ रुपए बजट निर्धारण होना था। इसमें राजस्थानी भाषा (rajasthani language) और बोलियों का संरक्षण, राजस्थानी साहित्य (literatutre) , कथा (stories), कहानियों पर शोध (research) , संगोष्ठी , कार्यशाला (workshops) का आयोजन के अलावा केंद्र सरकार और यूजीसी से भी सहयोग लेना निर्धारित था।

राजस्थानी भाषा से ज्यादा पंजाबी, सिंधी, उर्दू और अन्य भाषाओं में शिक्षक भर्ती हो रहे हैं। यह दुर्भाग्य है कि राजस्थानी भाषा में पढऩे के बाद रोजगार के अवसर नहीं मिलते। कॉलेज स्तर पर हालात ज्यादा खराब हैं। केवल दो कॉलेज में राजस्थानी भाषा का पढ़ाया जाना पीड़ादायक है।
डॉ. सी. पी. देवल, राजस्थानी साहित्यकार
राजस्थानी भाषा में जब तक रोजगार सृजन नहीं होगा तब तक इसका विकास नहीं हो सकता। स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों के स्तर पर विषय संचालन और शिक्षकों की भर्ती जरूरी है।
औंकार सिंह लखावत, पूर्व अध्यक्ष धरोहर संरक्षण और प्रोन्नति प्राधिकरण

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