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अजमेर

अजब-गजब..यहां टेनिस कोर्ट पर खेलते हैं क्रिकेट, एथेलेटिक्स ट्रेक पर हॉकी का मजा

टेबल टेनिस, लॉन टेनिस, फुटबॉल, राइफल शूटिंग, बैडमिंटन और अन्य इन्डोर गेम्स सुविधाएं उपलब्ध है।

अजमेरMay 27, 2018 / 07:52 pm

raktim tiwari

sports complex

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रक्तिम तिवारी/अजमेर।

चुस्त-दुरुस्त रहने और कॅरियर के लिहाज से खेलकूद बहुत जरूरी हैं। केंद्र और राज्य सरकार भी खेल सुविधाएं मुहैया कराने में पीछे नहीं है। लेकिन महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय विद्यार्थियों से ‘खेल रहा है। परिसर में खेल सुविधाएं बदहाल हैं। यहां ना इंडोर ना आउटडोर गेम्स सुविधाएं हैं।
विद्यार्थियों से प्रतिवर्ष खेल शुल्क वसूली विश्वविद्यालय का एकमात्र उद्धेश्य है। यहां नौजवानों को खेल सुविधाओं का फायदा नहीं मिल रहा है। विश्वविद्यालय के पास कायड़ रोड पर करीब 700 बीघा जमीन है। इसके कुछ हिस्सों में शैक्षिक प्रशासनिक भवन, छात्रावास और स्टाफ-टीचर्स क्वाटर बने हैं। जबकि कई हिस्से खाली पड़े हैं। खेल सुविधाओं के मामले में विश्वविद्यालय के हाल खराब हैं। यहां पढऩे वाले अथवा सम्बद्ध कॉलेज के विद्यार्थी क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल जैसे आउटडोर और बैडमिंटन, स्क्वैश, टेबल टेनिस, टेनिस और अन्य इंडोर गेम्स खेलना चाहें तो उन्हें निराशा हाथ लगेगी।
जेब काटो और मौज करो

खेल सुविधाओं और खेलों के विकास के लिए विश्वविद्यालय विद्यार्थियों से सौ रुपए खेल शुल्क वसूलता है। लेकिन परिसर में खेल सुविधाओं के विस्तार-विकास नजर नहीं आता। स्टाफ कॉलोनी के समीप प्रस्तावित सचिन तेंदुलकर स्टेडियम में नौ साल से एक ईंट भी नहीं लग सकी। फ्रांस के रॉला गैरां की तर्ज पर निर्मित लाल बजरी का टेनिस कोर्ट बर्बाद हो चुका है। यहां बच्चे और नौजवान अब क्रिकेट खेलते हैं।
यह कैसा हॉकी मैदान

विश्वविद्यालय ने हॉकी मैदान के नाम पर युवाओं और शहरवासियों को बड़ी सफाई से धोखा दिया है। स्टाफ कॉलोनी परिसर में टेनिस कोर्ट के पास ही हॉकी मैदान का बोर्ड टांग दिया है। यहां कभी ना किसी को हॉकी खेलते देखा गया। ना ही हॉकी के लिए गोल पोस्ट लगाए गए हैं। विश्वविद्यालय में अध्ययनरत विद्यार्थियों ने भी इस मैदान पर कभी हॉकी नहीं खेली है।
फुटबॉल से मतलब ही नहीं
यूरोप, उत्तरी और दक्षिणी अमरीका, चीन, जापान सहित भारत में फुटबॉल लोकप्रिय है। कई विश्वविद्यालय-कॉलेज ने फुटबॉल को प्रोत्साहन दिया है। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय को फुटबॉल से कोई मतलब नहीं है। परिसर में कई बीघा जमीन होने के बावजूद फुटबॉल मैदान नहीं है। 31 साल में कुलपतियों अथवा प्रशासनिक अधिकारियों ने भी इसकी तरफ ध्यान नहीं दिया है।
कहीं भी खेल लो क्रिकेट

परिसर में हॉकी और फुटबॉल की तरह ही क्रिकेट का बुरा हाल है। अधिकृत रूप से विश्वविद्यालय के पास कोई स्तरीय क्रिकेट ग्राउन्ड और पिच नहीं है। अलबत्ता परिसर में कहीं भी पत्थर लगाकर या तीन डंडे लगाकर क्रिकेट खेला जा सकता है। लाखों रुपए वेतन-भत्ते लेने वाले कार्मिकों, अधिकारियों-शिक्षकों को भी खेल सुविधाओं की लचर स्थिति दिखाई नहीं देती है।
स्कूलों से भी पीछे…..

खेल सुविधाओं के मामले में विश्वविद्यालय से शहर के स्कूल ज्यादा बेहतर हैं। मेयो कॉलेज और मेयो कॉलेज गल्र्स स्कूल, मयूर, संस्कृत द स्कूल और अन्य स्कूल में उच्च स्तरीय स्वीमिंग पूल, बास्केटबॉल कोर्ट, हॉकी-क्रिकेट मैदान, स्कवैश, टेबल टेनिस, लॉन टेनिस, फुटबॉल, राइफल शूटिंग, बैडमिंटन और अन्य इन्डोर गेम्स सुविधाएं उपलब्ध है।
कोच नहीं, कौन तराशेगा खिलाडिय़ों को

विश्वविद्यालय में स्पोट्र्स बोर्ड के हाल खराब हैं। 20 साल से स्थाई खेल निदेशक और कोच नहीं है। पूर्व में भारतीय खेल प्राधिकरण के कोच यहां सेवाएं देते थे, लेकिन अब यह सिलसिला बंद हो चुका है। एकाध बार अनुबंध पर खेल प्रशिक्षक रखे गए, पर उसका ज्यादा फायदा नहीं मिला। विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कॉलेज का हाल भी ऐसा ही है। 80 प्रतिशत सरकारी और निजी कॉलेज बगैर खेल प्रशिक्षकों के संचालित हैं। सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय जैसे कुछेक कॉलेज को छोड़कर कहीं शारीरिक शिक्षा विभाग नहीं नहीं है। कॉलेज स्तर पर खेलकूद प्रतियोगिताओं का आयोजन भी नहीं होता।
कॉलेज में भी संसाधन कम

एसपीसीजीसीए-टूटा-फूटा स्वीमिंग पूल, बास्केटबॉल कोर्ट, दयानंद कॉलेज-स्वीमिंग पूल नहीं उच्च स्तरीय, संस्कृत और लॉ कॉलेज-ना खेल मैदान ना कोई खेल सुविधाएं, श्रमजीवी कॉलेज-ना खेल मैदान ना कोई खेल सुविधाएं, अन्य निजी कॉलेज-केवल कक्षाओं के लिए भवन

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