भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने प्रो. सतीश अग्रवाल को 15 अक्टूबर को एक शोधार्थी से 50 हजार रुपए रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ा था। ब्यूरो की टीम ने इनके बैंक खाते, लॉकर और घर की तलाशी ली। अग्रवाल को 29 अक्टूबर तक न्यायिक अभिरक्षा में भेजा गया है। उधर राजभवन के उच्चाधिकारी विश्वविद्यालय से प्रो. अग्रवाल के मामले में हुई कार्रवाई की रिपोर्ट तलब कर चुका है।
बनानी होगी जांच कमेटी नियमानुसार विश्वविद्यालय को प्रो. अग्रवाल के रिश्वत मामले में आंतरिक जांच कमेटी बनानी होगी। अग्रवाल के खिलाफ कई शोधार्थी-विद्यार्थी तत्कालीन कुलपतियों को शिकायतें करते रहे हैं। कुलपति इन्हें हल्के में लेते रहे थे। लेकिन विशेष अदालत प्रो. अग्रवाल को न्यायिक अभिरक्षा में भेज चुकी है। नियमानुसार उनका निलंबन भी तय है। ऐसे में विश्वविद्यालय स्तर पर उनकी शिकायतों-पुराने मामलों की जांच करना जरूरी है।
कुलपति को ही अधिकार नियमानुसार विश्वविद्याल में कुलपति ही शैक्षिक प्रधान होते हैं। वे ही शिक्षकों की नियुक्ति, गम्भीर मामलों में जांच कमेटी के गठन, निलंबन, कारण बताओ नोटिस, और चार्जशीट देने के लिए अधिकृत हैं। उधर राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश पर कुलपति प्रो. आर. पी. सिंह 26 अक्टूबर तक कामकाज नहीं कर सकते हैं। कुलपति को कामकाज की अनुमति या उनके स्थान पर किसी अन्य की नियुक्ति होने पर ही जांच कमेटी बन सकती है।
अन्य विश्वविद्यालयों में भी यही नियम शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई के मामले में प्रदेश के अन्य विश्वविद्यालयों में भी जांच कमेटी गठन का नियम है। राजस्थान विश्वविद्यालय में भी जूलॉजी के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. गोयल ऐसे मामले में पकड़े गए थे। नियमानुसार कुलपति ने आंतरिक जांच कमेटी का गठन किया। कमेटी की जांच रिपोर्ट के आधार पर गोयल को निलंबित किया गया। इसी तरह जोधपुर, उदयपुर और अन्य विश्वविद्यालयों में भी शिक्षकों से जुड़ी अनियमितताओं के मामले में भी जांच कमेटी के गठन की कार्रवाई हुई है।
किसी दूसरे शिक्षक को देने होंगे पदभार प्रो. अग्रवाल के पास डीन स्नातकोत्तर (पी.जी.), एलएलएम के विभागाध्यक्ष, परीक्षा केंद्राधीक्षक की जिम्मेदारी है। उनके निलंबन की सूरत में विश्वविद्यालय को इन पदों की जिम्मेदारियां दूसरे शिक्षकों को देनी होगी। मालूम हो विश्वविद्यालय में कला, वाणिज्य, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान और अन्य संकाय में मात्र 18 शिक्षक कार्यरत हैं।