वे बुधवार को गुजरात विद्यापीठ के 69वें दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे। गुजरात विद्यापीठ के कुलाधिपति आचार्य देवव्रत ने कहा कि बापू ने विद्यार्थियों को मात्र अक्षरज्ञान देने या डिग्रियां देने के लिए गुजरात विद्यापीठ की स्थापना नहीं की थी। वह विचारों में प्रबुद्ध हों, संस्कारों से उन्नत हों, बौद्धिक रूप से समृद्ध हों और भारतीय जीवन मूल्यों के आधार पर जीवन जिएं, ऐसे युवक-युवतियों के निर्माण के लिए इसकी स्थापना की गई थी। यहां के विद्यार्थियों ने मातृभाषा, राष्ट्रभाषा, आत्मनिर्भर भारत और ग्राम स्वराज जैसे आन्दोलनों का नेतृत्व किया है। देश निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज बापू के आदर्शों को उसी तत्परता और कर्मठता से आगे बढ़ाने के चिंतन के साथ संकल्पबद्ध होने की आवश्यकता है।गुजरात विद्यापीठ के मंत्र ‘सा विद्या या विमुक्तये’ का सन्दर्भ देते हुए उन्होंने कहा कि कुरिवाजों, गलत परम्पराओं और बंधनों से मुक्ति दे, वही सच्ची विद्या है। बापू भौतिक और सामाजिक बंधनों से मुक्त होने की शिक्षा के हिमायती थे। मानव को पूर्ण बनाए, सादगीपूर्ण जीवन जिए और स्वच्छता का हितैषी बनाए ऐसी विद्या के संवाहक थे।
कुलपति ने वार्षिक रिपोर्ट और विद्यापीठ की वेबसाइट का लोकार्पण किया। इस अवसर पर पूर्व शिक्षा मंत्री भूपेन्द्र चूड़ास्मा, मंडल के मंत्री डॉ. हर्षद पटेल, गुजरात विद्यापीठ ट्रस्टी मंडल के सदस्यगण, विद्यार्थी, अभिभावक उपस्थित रहे। कार्यकारी कुल सचिव डॉ. निखिल भट्ट ने समारोह का संचालन किया।
गांधी के मूल्यों पर बढ़ रही है विद्यापीठ
कार्यकारी कुलनायक प्रो. भरत जोशी ने कहा कि यह संस्था दृढ़ मनोबल और सकारात्मक परिवर्तन के आधार पर नए क्षितिजों की ओर आगे बढ़ रही है। हमारे तमाम प्रयासों के मूल में गांधीजी द्वारा प्रस्थापित मूल्य हैं।
62 विद्यार्थियों को पदक
दीक्षांत समारोह में 61 विद्यार्थियों पीएचडी, 10 को एम.फिल, 434 को एम.ए., 397 को बी.ए. और 51 विद्यार्थियों को स्नातकोत्तर की डिग्री प्रदान की गई। राज्यपाल ने 43 विद्यार्थियों को 62 पारितोषिक प्रदान किए।