गांव के लोग खुद को एनआरआई या एनआरजी की बजाय एनआरडी कहलाना पसंद करते हैं। इस दिवस का उद्देश्य सांस्कृतिक धरोहर को बरकरार रखने के सभी प्रयास करना है। लोगों को अपने वतन से जोड़े रखने के लिए ऐसे कार्यक्रम व उत्सव जरूरी हैं। गांव की अपनी डिजिटल वंशावली भी है। इस वंशावली में गांव की पुत्रियों व पुत्रवधुओं को भी स्थान दिया गया।
विदेशों में रहते हैं ज्यादातर परिवार करीब 11 हजार की आबादी वाले इस गांव के ज्यादातर लोग विदेशों में रहते हैं। इनमें मुख्यतया 1400 परिवार ब्रिटेन, 700 से ज्यादा अमरीका, करीब 200 परिवार कनाडा, करीब 150 परिवार न्यूजीलैण्ड और करीब 100 परिवार आस्ट्रेलिया में रहते हैं। इस तरह 4 हजार से ज्यादा परिवार के लोग विदेशों में रहते हैं।
यह है बेशुमार सुविधाएं पाटीदार बहुल इस गांव में अंडरग्राउंड ड्रेनेज सिस्टम, बेहतरीन सडक़ें, स्ट्रीट लाइट, करीब एक दर्जन राष्ट्रीयकृत व निजी बैंक, किडनी केन्द्र, पोलियो व आर्थोपेडिक अस्पताल, मेटरनिटी अस्पताल, आंख, दांत के अस्पताल, ग्लुकोमा रिसर्च सेन्टर है। गांव का अपना कॉफी-टेबल बुक व अपनी वेबसाइट है।