अधिकांशतः देखने में आता है कि अधिकतर सड़क हादसे मध्यरात्रि से भोर होने के बीच में घटित होते हैं, जिस समय थकावट के कारण या तो वाहन चालकों पर नींद की खुमारी होती है या फिर कुछेक वाहन चालक मदिरापान भी किये होते हैं और वाहन पर नियंत्रण नहीं रख पाते। इसके दृष्टिगत रात्रि एक बजे से तीन बजे के मध्य यदि वाहनों के चलने पर प्रतिबन्ध लगाया जाये तो सर्वथा उचित होगा। यद्यपि कुछ अपवादों को छोड़कर जैसे-मेडिकल इमरजेन्सी या फिर किसी को कहीं से फ्लाइट पकड़नी हो या अन्य किसी प्रकार की आपातकालीन स्थिति हो तो उसे जाने दिया जाये, बाकी शेष वाहनों के चलने पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगाना उचित होगा।
एक्सप्रेसवे पर जनसुविधा केन्द्रों की कमी के चलते भी अनेक दुर्घटनायें घटित होती हैं। जैसे कि अनेक महिलायें जो मधुमेह से पीड़ित होती हैं और बार-बार लघुशंका जाने को विवश होती हैं, किन्तु जनसुविधा केन्द्र की अधिक दूरी के कारण उन्हें असुविधा होती है।र इस कारण भी प्रायः निजी वाहनों को तेज गति से दौड़ाया जाता है। इसके लिए चाहिए कि प्रत्येक 50 किमी0 के अन्तराल पर जनसुविधा केन्द्र की सुविधा मुहैया हो। 302 किमी0 लम्बे लखनऊ एक्सप्रेसवे पर मात्र तीन जगहों पर जनसुविधा केन्द्र हैं जो कि खासतौर से महिला यात्रियों के लिए खासा परेशानी का कारण हैं।
यमुना एक्सप्रेसवे पर 8 जुलाई, 2019 को हुए बस हादसे में मारे गये लोगों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ कि लगभग 10 व्यक्तियों की मृत्यु पसलियाँ टूटकर उनके फेफड़ों में घुसने के कारण हुई थी। यदि यात्रियों ने सीटबेल्ट बांधी हुई होती तो इतनी जानें न जातीं। जिस प्रकार कारों में सीटबेल्ट होती हैं, उसी प्रकार बसों में भी ड्राइवर के साथ-साथ प्रत्येक यात्री सीट पर भी सीटबेल्ट लगवाई जाए। प्रत्येक सीट के पिछले हिस्से पर सीटबेल्ट को लगाने के निर्देश का स्टिकर लिखित रूप में अंकित किया जाये। साथ ही बिना सीटबेल्ट के यदि कोई यात्री सफर करता पाया जाए, तो उससे अर्थदण्ड वसूले जाने का प्रावधान भी लागू हो। यात्रियों को विज्ञापनों के माध्यम से सीटबेल्ट के प्रयोग के लिए जागरूक भी किया जाना चाहिए। मोटर व्हीकल एक्ट के नये संशोधित कानून में बसों में भी सीटबेल्ट का होना अनिवार्य किया गया है।
सभी कारों तथा रोडवेज़ और निजी बसों में ‘ब्लैक बॉक्स’/रिकॉर्डर जैसे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस, जिन्हें ”इवैन्ट डेटा रिकॉर्डर (ई0डी0आर)“ कहा जाता है, लगाया जाना अनिवार्य किया जायए। इस प्रकार के डिवाइस वाहन की गति और ड्राइवर की गतिविधियाँ रिकॉर्ड हो जाती हैं, जिससे दुर्घटना की स्थिति में उसके कारणों का पता लगाये जाने में पुलिस विभाग और इन्श्योरेन्स कम्पनियों को मदद मिल सके। ब्लैक बॉक्स भी दो प्रकार के होते हैं-एक साधारण किस्म के और दूसरे किस्म के ब्लैक बॉक्स अत्याधुनिक तकनीक के होते हैं, जिनमें कैमरे के साथ-साथ जी0पी0एस0 यूनिट भी लगी होती है और जिनमें वाहन चालक का ‘परफॉर्मेन्स डेटा’, जैसे-तीव्र गति से वाहन चलाना, ब्रेक लगाने का तरीका, वाहन मोड़ने का तरीका आदि क्रियाएँ एक सुरक्षित डिजिटल एस0डी0 कार्ड में कैद हो जाती हैं, जिन्हें बाद में कम्प्यूटर पर आसानी से देखा जा सकता है।
गतिसीमा पर नियंत्रण की दृष्टि से सभी वाहनों में ”स्पीड गवर्नर“ यंत्र की अनिवार्यता की मांग करते हुए कहा गया कि बड़े और भारी वाहनों के लिए गतिसीमा 60 किमी0 प्रति घंटा और छोटे वाहनों जैसे कारों और जीपों इत्यादि के लिए गतिसीमा 80 किमी0 प्रति घंटा निर्धारित की जानी चाहिए। साथ ही बिना ”स्पीड गवर्नर“ यंत्र वाले वाहनों को फिटनेस प्रमाण-पत्र भी उपलब्ध नहीं कराया जाना चाहिए।
सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (MORTH), भारत सरकार द्वारा विगत अप्रैल-2018 में एक अधिसूचना जारी करके अधिकतम गतिसीमा को बढ़ाया गया था, जिसके अनुसार एक्सप्रेसवेज़ पर अधिकतम गतिसीमा 120 किमी0 प्रति घंटा, राष्ट्रीय राजमार्गों पर 100 किमी0 प्रति घंटा और शहरी सड़कों पर अधिकतम गतिसीमा 70 किमी प्रति घंटा निर्धारित है। बढ़ते हुए हादसों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से मंत्रालय को गतिसीमा बढ़ाये जाने के लिए जारी की गई अपनी उक्त अधिसूचना में संशोधन करना चाहिए।