यह कहना था अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के डॉ. बालमुकुन्द पाण्डे का। आगरा कॉलेज मैदान में आयोजित साहित्य उत्सव में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए उन्होंने कहा कि इतिहास पांचवा वेद है। जिसका इतिहास लुप्त हो गया उसका भविष्य अंधकार में हो जाता है। पिछला पैर इतिहास और अगला पैर भविष्य है। जिसका पिछला पैर मजबूत होगा तभी अगला पैर मजबूत से आगे बढ़ेगा। विकृत इतिहास के कारण यह देश मेंटल केस की ओर जा रहा है। शोध भारतीय चेतना के प्रकाश में होने चाहिए। दुनिया को रास्ता दिखाना वाले भारत है। भारत ने दुनिया को कपड़े पहनना सिखाया। हमने दुनिया को शिल्पकारी, दस्तकारी दी। दुनिया से लेने के लिए हमारे पास कुछ नहीं था। कपड़े, मलमल, दवाएं, मसाले निर्यात करते थे। नालन्दा में संस्कृत जानने वालों को प्रवेश परीक्षा के बाद ही प्रवेश मिलता था। विकृत इतिहास ने हमें दास, सति प्रथा, बाल विवाह जैसी कुरीतियों में जकड़ा हुआ। इसीलिए आज हमारे युवाओं का ऐसे अपमानित इतिहास में मन नहीं लगता। 28 युद्ध लड़ने वाले महाराणा प्रताप महान या अकबर महान है। निर्णय नहीं कर पा रहा इतिहासकार। ऐसी स्थिति में जरूरी है कि भारत के इतिहास को भारतीय चैतन्य के प्रकाश में भारतीय दृष्टि से भारतीय इतिहासकारों द्वारा भारत के स्वाभीमान के लिए लिखा जाना चाहिए।
हम रिसर्च करते हैं मध्य काल में महिलाओं की दुर्दशा। देश के निर्माण में महिलाओं की भूमिका। भारतीय संस्कृति निर्माण में ऋषि पत्नियों का योगदान गार्गी, अपाला, सावित्री जैसी नारियों का जिक्र होना चाहिए। विकृत इताहिस हमें नकारात्मका की ओर हमें ले गया, हमने भी उसे स्वीकार कर लिया। हमारे ऋषि मुनि लगोंटी पहनकर जंगलों में लिखते थे। कई श्लोक, वेद और ग्रंथ लिए दिए। रामायण, महाभारत लिख दिए। वह न राजाओं के आश्रित थे न किसी की सेवा करते ते। इसलिए उन्होंने जो लिखा सत्य लिखा। ग्रंथों के प्रति श्रद्धा होगी सभी ज्ञान मिलेगा। इस अवसर पर भीमराव अम्बेडकर विवि के कुलपति डॉ. अरविन्द दीक्षित, पं. दीनदयाल उपाध्याय ग्राम विकास संस्थान के निदेशक प्रो. सुगम आनन्द, संस्कार बारती के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने भी अपने विचार रखे। संचालन डॉ. तरुण शर्मा व धन्यवाद ज्ञापन मुख्य संयोजक अमी आधार निडर ने किया।
चार्टड एक्ट के लिए इंग्लैण्ड में एक सप्ताह की बैठक हुई। जिसमें चिन्तन हुआ कि भारत में तुर्कों और मुगलों की गुलामी की छाप बैठी नहीं। क्योंकि यहां संस्थानों के समान्तर एक और संस्थान चल रहा है। दादी की कहानी, मां की वेदियां, लोकगीतों, कहावतों, नाटक, कला, चित्रकला में कथा कहानियों के माध्यम से समानान्तर दूसरा संस्थान चल रहा था। इसलिए भारतीय संस्कृति की जड़ों को खत्म करने के लिए चार्टड एक्ट बना।