वास्तव में सेठ हीरालाल एक कंजूस और लालची स्वभाव का व्यक्ति था। वह जहां कहीं भी भोज अथवा भंडारे में जाता वहां से कोई न कोई चीज नजर बचाकर चुरा लाता। जब राजा ने बीरबल की बात नहीं मानी तब बीरबल बोला- “हुजूर! आप कहें तो यहां सभी के सामने एक लालची सेठ का पानी उतार दूं। तलाशी लेने पर इसकी कुर्ते की जेब से चम्मच निकलेगा।
इस पर राजा ने कहा- “तलाशी नहीं होगी, तुम कुछ ऐसा करो की चम्मच भी बरामद हो जाए और नगरसेठ भी अपमानित ना हो!”
बीरबल ने वहां सभी को एक चांदी का चम्मच निकालते हुए कहा- “श्रीमान आप लोग भोजन का आनंद ले रहे हैं, आप मेरे जादू का करिश्मा देख कर कुछ मनोरंजन भी कर ले। इस चम्मच पर जिस व्यक्ति का नाम पढ़कर ***** मार दूंगा यह चमक उसकी जेब में पहुंच जाएगी।” इतना कहकर बीरबल ने सेठ हीरालाल का नाम लेकर हाथ में पकड़ी चम्मच पर फूंक मारी और सभी की नजर बचाकर चम्मच को अपनी जेब में छुपा लिया।
अब बीरबल सेठ हीरालाल से बोला- “सेठजी! जरा अपनी जेब को खोल कर देखिए चम्मच वहां पहुंचा कि नहीं!” सेठ ने बीरबल की चतुराई को भांप लिया और जेब से चम्मच निकालकर मंत्री के हाथ में रख दिया।
इस रहस्य को अकबर-बीरबल और सेठ के अलावा कोई और नहीं जान सका। लोगों ने ताली बजाकर बीरबल के जादू का स्वागत किया। बीरबल ने अपनी चतुराई से सेठ की इज्जत बचाते हुए चांदी का चम्मच बरामद कर अपनी काबिलियत का लोहा मनवा लिया।
प्रस्तुति
हरिहर पुरी
मठा प्रशासक, श्रीमनकामेश्वर मंदिर