नलखेड़ा से दक्षिण दिशा में 16 किमी दूर तहसील के ग्राम गोंदलमऊ के शिवमंदिर में स्थापित यह शिवलिंग गुप्तकाल का है। श्रावण मास में यहां शिवभक्तों का मेला लगा हुआ है। ऊंची पहाड़ी पर बसे इस मंदिर के समीप अति प्राचीन बावड़ी व धर्मशाला के अवशेष मौजूद हैं। मंदिर के समीप सैकडों वर्ष पुराना विशाल तालाब भी है जो 350 बीघा से भी अधिक भूमि पर फैला हुआ है। वहीं शिवलिंग को लेकर कई किवदंतियां हैं। बुजुर्गों के अनुसार एक चमत्कार यहां आज भी होता है। श्रावण और महाशिवरात्रि पर शिवलिंग की आराधना करने पंचमुखी नागदेवता यहां आते हैं।
ग्राम के विट्ठलप्रसाद, ईश्वरसिंह राजपूत ने बताया कि प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के दिन रात्रि में व श्रावण मास में एक बार पंचमुखी सफेद नागदेव भोलेनाथ के दर्शन के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है। नागदेेवता के दर्शन भी किसी बिरले शिवभक्त को होते हैं। नागदेव के दर्शन करने वाले मंदिर के पुजारी ने बताया कि नागराज आकर शिवलिंग पर लिपट जाते हैं।अपनी साधना पूर्ण कर अदृश्य हो जाते हैं।
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खुदाई में निकलते हैं पुरातन अवशेष
ग्राम गोंदलमऊ ऊंची पहाडी पर बसा ग्राम है। इसका इतिहास पुरातन माना जाता है। किवदंतियों के अनुसार पुराने समय में यहां कोई तीर्थ स्थान रहा होगा, जो धूलकोट आने पर दब गया होगा। इसी काराण यहां खुदाई के दौरान पुरातन महत्व के अवशेष निलकते रहते हैं। वर्षों पूर्व एक स्थान की खुदाई के दौरान जैन धर्म की कईं प्राचीन मूर्तियों के अवशेष निकले थे, जो आज भी उज्जैन के जयसिंहपुरा स्थित जैन समाज के संग्रहालय में रखी हुई हैं। बावडी व धर्मशाला के अवशेष भी उसी समय के प्रतीत होते हैं। यदि यहां पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई की जावे तो युगों पूर्व की संस्कृति के अवशेष मिल सकते हैं।
प्रदेश में एकमात्र मध्यप्रदेश में यह एकमात्र ऐसा शिवलिंग है जिस पर 1111 शिवलिंग की आकृतियां उभरी हुई हैं, जिन्हें आज भी स्पष्ट देखा जा सकता है। यह शिवलिंग लाल पत्थर का बना है। ऐसा ही शिवलिंग राजस्थान की विश्वप्रसिद्ध चंद्रभागा नदी के किनारे है।