इधर शनिवार शम को कालापीपल के पंचमुख हनुमान मंदिर पर चंद्रवंशी के समर्थन में समर्थकों ने जमकर आतिशबाजी की थी। कालापीपल में अनुशासित माने जाने वाले भाजपा संगठन में इस तरह विरोध और पूतला दहन की स्थिति को देखते हुए नागरिकों द्वारा टिप्पणी की गई कि कांग्रेस का कल्चर भाजपा में भी आ रहा है। उधर टिकिट वितरण में मेवाड़ा समाज को प्रतिनिधित्व नहीं मिलने पर मेवाड़ा समाज में भी नाराजगी है। बताया जाता है कि शिवप्रतापसिंह मंडलोई के समर्थकों ने भोपाल पहुंचकर प्रदर्शन करते हुए प्रत्याशी बदले जाने की मांग की।
कुछ के विरोध में खुलकर सामने आ रहे पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ता, वहीं कुछ के लिए गोपनीय रूप से हो रही प्लानिंग
शाजापुर. तीनों सीटों पर अंतर्कलह के कारण प्रत्याशियों को नुकसान हो सकता है। हालांकि अभी नामांकन जमा नहीं हुए हैं। इनके जमा होने व नाम वापसी के पश्चात उम्मीदवारों की सूची जारी होने पर स्थिति स्पष्ट होगी।
शाजापुर विधानसभा
कांग्रेस : वैसे तो शाजापुर विधानसभा में कांग्रेस की ओर से अंतर्कलह की खबरें न के बराबर ही सुनाई देती हैं। यहां पार्टी ने लगातार 8वीं बार हुकुमसिंह कराड़ा को प्रत्याशी बनाया है। कराड़ा के प्रत्याशी बनने के कारण पार्टी में उनके कोई विशेष प्रतिद्वंद्वी नहीं है, लेकिन अन्य विधानसभा के असंतुष्ट उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं। कराड़ा चुनाव में विशेष सावधानी बरतते हुए सभी पहलुओं को साधने में जुटे हुए हैं।
भाजपा : भाजपा ने लगातार तीसरी बार अरुण भीमावद को प्रत्याशी बनाया है। भीमावद को पहली बार 2013 में प्रत्याशी बनाया था। इसमें जेपी मंडलोई बागी होकर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने वाले थे, लेकिन वरिष्ठों की समझाइश पर समझौता कर लिया था। 2018 के चुनाव में दोबारा भीमावद को टिकट मिलने पर मंडलोई ने निर्दलीय फॉर्म भर दिया था। इसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस ने एकतरफा जीत लिया। इस बार फिर से भीमावद मैदान हैं, लेकिन अनेक दावेदार जो टिकट की दौड़ में थे उसमें से कुछ तो साथ दिखने लगे हैं, लेकिन कुछ के कारण अंतर्कलह का खतरा बना हुआ है।
शुजालपुर विधानसभा
कांग्रेस : शुजालपुर विधानसभा में कांग्रेस में पिछले चार में से तीन चुनाव में भितरघात को हार का कारण बताया गया है। पिछली बार यहां से कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी रामवीरसिंह सिकरवार को हार का सामना करना पड़ा था। इस बार फिर से कांग्रेस ने सिकरवार पर भरोसा जताया है। हालांकि इस सीट से मौजूदा जिलाध्यक्ष योगेंद्रसिंह बंटी बना भी प्रबल दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने टिकट नहीं दिया। ऐसे में बना के समर्थकों ने टिकट घोषणा होने के बाद कुछ स्थानों पर सिकरवार का विरोध किया था। हजारों कांग्रेसियों ने भोपाल पहुंचकर कमलनाथ के बंगले के सामने भी विरोध जताया था। ऐसे में कांग्रेस को चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
भाजपा : पिछले चार विधानसभा से लगातर इस सीट पर भाजपा ने कब्जा जमाया हुआ है। ऐसे में इस सीट पर पार्टी के अंतर्कलह का खतरा कम है, लेकिन पिछले चुनाव में कालापीपल से चुनाव जीते इंदरसिंह परमार के मैदान में उतरने पर टिकट मांगने वाले कुछ दावेदारों ने अंदरुनी रूप से भितरघात के लिए प्रयास किया था, लेकिन प्रयास सफल नहीं हुआ। इस बार फिर से परमार को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है। ऐसे में यहां से अन्य दावेदार नुकसान पहुंचा सकते थे।
कालापीपल विधानसभा
कांग्रेस : कालापीपल विधानसभा में पिछले चुनाव में मौजूदा विधायक कुणाल चौधरी को कांग्रेस ने प्रत्याशी घोषित किया था। इसके बाद चौधरी के बाहरी होने का मुद्दा बनाते हुए कांग्रेसियों ने प्रदर्शन भी किया था। हालांकि चौधरी तब डेमेज कंट्रोल करने में सफल रहे थे और भाजपा के कब्जे से सीट को निकाल लिया था। इस बार भी कांग्रेस ने चौधरी को प्रत्याशी बनाया है, लेकिन कांग्रेस में विरोध के स्वर सामने आ चुके हैं। चतुर्भुज तोमर ने टिकट से नाराज होकर आम आदमी पार्टी ज्वाइन कर ली। आप ने तोमर को कालापीपल से प्रत्याशी भी घोषित कर दिया है। ऐसे में यहां पर चुनाव चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
भाजपा : इस बार भाजपा ने कालापीपल विधानसभा में समस्त पूर्व विधायक व पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों को दरकिनार करते हुए युवा घनश्याम चंद्रवंशी को प्रत्याशी घोषित किया है। ऐसे में ये बात पार्टी के वरिष्ठों को नागवार गुजरी। चंद्रवंशी पर बाहरी प्रत्याशी होने का मुद्दा बनाते हुए विरोध प्रदर्शन किया। ऐसे में चंद्रवंशी को सबसे पहले अंतर्कलह को दूर करना होगा। जो सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है।