तंत्र का स्थान है नलखेड़ा, विराजित हैं साक्षात मां बगलामुखी
महाभारतकालीन बगलामुखी मंदिर लखुंदर नदी के तट पर है, हां मां बगलामुखी, लक्ष्मी और सरस्वत एक साथ विराजित हैं। दुनिया में कहीं भी ऐसा एकसाथ नहीं है। मिर्च हवन से तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध
नलखेड़ा ( आगर मालवा ). आगर मालवा जिले के नलखेड़ा में लखुंदर नदी के तट पर स्थित है मां बगलामुखी का भव्य मंदिर। यह मंदिर धार्मिक व तांत्रिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यहां का र्मिची हवन दुनियाभर में तंत्र साधना और अपने पर आए कष्टों को दूर करने के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि जिस नगर मे मां बगलामुखी विराजित हो, उस को संकट देख भी नहीं पाता। बताते हैं यहां स्वयंभू मां की मूर्ति महाभारतकाल की है। यहां युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण के निर्देशन पर साधना कर कौरवों पर विजय प्राप्त की थी। यह स्थान आज भी चमत्कारों के कारण जाना जाता है। देश-विदेश से कई साधु-संत तंत्र साधना करते हैं। मां बगलामुखी वह शक्ति है जो रोग शत्रुकृत अभिचार तथा समस्त दुखों व पापों का नाश करती है। इस मंदिर में त्रिशक्ति मां विराजित है। ऐसी मान्यता है कि मध्य में मां बगलामुखी, दाएं मां लक्ष्मी तथा बाएं मां सरस्वती हैं। त्रिशक्ति मां का मंदिर भारतवर्ष में दूसरा कहीं नहीं है। बेलपत्र, चंपा, सफेद, आंकडे, आंवले तथा नीम एवं पीपल (एकसाथ) स्थित हैं। यह मां बगलामुखी के साक्षात होने का प्रमाण हैं। मंदिर के पीछे लखुंदर नदी (पुरातन नाम लक्ष्मणा) के किनारे कई संतों की समाधियां जीर्णक्षीर्ण अवस्था में हैं। यह मंदिर में बड़ी संख्या में संतों के रहने का प्रमाण है। अनूठा मंदिर : छत बनाने पर धूप में आकर बैठ जाती है प्रतिमा
16 खंभों का 250 साल पुराना सभामंडप मंदिर परिसर में 16 खंभों वाला सभामंडप है, जो 252 साल पहले संवत 1816 में पंडित ईबुजी दक्षिणी कारीगर श्री तुलाराम ने बनवाया था। इसी सभा मंडप मे मां की और मुख करता एक कछुआ है, जो यह सिद्ध करता है कि पुराने समय में मां को बलि चढ़ाई जाती थी। मंदिर के ठीक सम्मुख लगभग 80 फीट ऊंची दीपमालिका है। कहा जाता है कि इसका निर्माण महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था। मंदिर प्रांगण मे ही एक दक्षिणमुखी हनुमान का मंदिर, एक उत्तरमुखी गोपाल मंदिर तथा पूर्वमुखी भैरवजी का मंदिर भी है। मुख्य द्वार सिंहमुखी भी अपने आप में अद्वितीय है।
यह है मां का स्वरूप मां बगलामुखी में भगवान अर्धनारीश्वर महाशंभों के अलौलिक रूप का दर्शन मिलता है। भाल पर तीसरा नेत्र व मणिजडि़त मुकुट व चंद्र इस बात की पुष्टि करते हैं। बगलामुखी को महारुद्र (मृत्युंजय शिव) की मूल शक्ति के रूप में माना जाता है। वैदिक शब्द बग्ला है उसका विकृत आगमोक्ता शब्द बगला अत मां बगलामुखी कहा जाता है। भगवती बगला अष्टमी विद्या है। आराधना श्री काली, तारा तथा षोडशी का ही पूर्व क्रम है। सिद्ध-विद्या-त्रयी में पहला स्थान है। मां बगलामुखी को रौद्र रूपिणी, स्तभिंनी, भ्रामरी, क्षोभिनी, मोहनी, संहारनी, द्राविनी, जिम्भिनी, पीतांबरा, देवी त्रिनेभी, विष्णुवनिता, विष्णु-शंकर भमिनी, रुद्रमूर्ति, रौद्राणी, नक्षत्ररूपा, नागेश्वरी, सौभाग्य-दायनी, सुत्र संहार, कारिणी सिद्ध रूपिणी, महारावन-हारिणी परमेश्वरी, परतंत्र, विनाशनी, पीत-वासना, पीत-पुष्प-प्रिया, पीतहारा, पीत-स्वरूपिणी, ब्रह्मरूपा कहा जाता है।
उज्जैन दूसरे तीर्थों से कैसे है अलग.. उज्जैन में क्या है खास ..जानिए इसलिए चढ़ाते हैं पीली वस्तुएं मां की उत्पत्ति के विषय में प्राण तोषिनी में शंकरजी पार्वती को इस प्रकार बताया है-एक बार सतयुग में विश्व को विनिष्ट करने वाला तूफान आया। इसे देखकर जगत की रक्षा में परायण श्री विष्णु को चिंता हुई। तब उन्होंने सौराष्ट्र देश में हरिद्रा सरोवर के निकट पहुंचकर तपस्या शुरू की। उस समय मंगलवार चतुर्दशी को अद्र्ध रात्रि के समय माता बगला का अविर्भाव हुआ। त्रैलोक्य स्तभिनी महाविधा भगवती बगला ने प्रसन्न होकर श्रीविष्णु को इच्छित वर दिया, जिसके कारण विश्व विनाश से बच गया। भगवती बगला को वैष्णव तेजयुक्त ब्रह्मामास्त्र-विद्या एवं त्रिशक्ति भी कहा गया है। ये वीर रात्रि है। कालिका पुराण में लिखा है की सभी दसमहाविधाएं सिद्ध विघा एवं प्रसिद्ध विद्या है इनकी सिद्धि के लिए न तो नक्षत्र का विचार होता है और न ही कलादिक शुद्धि करनी पड़ती है। ना ही मंत्रादि शोधन की जरूतर है। महादेवी बगलामुखी को पीत-रंग (पीला) अत्यंत प्रिय है। यही कारण है की मां को ये पीली वस्तुएं चढ़ाई जाती है।