वहीं, अमरीका ने अफगानिस्तान के नए तालिबान शासकों को राजनीतिक मान्यता देने से इनकार कर दिया है। तालिबन सरकार के मुताबिक, अमरीकी सैनिकों के बीते अगस्त में देश से हटने के बाद अमरीका और तालिबान के बीच पहली सीधी वार्ता के बाद यह बयान आया है।
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अमरीका की ओर से बयान में कहा गया कि दोनों पक्षों ने अफगानिस्तान के लोगों को सीधे तौर पर ठोस मानवीय सहायता उपलब्ध कराने पर चर्चा की। तालिबान ने कहा कि वार्ता कतर के दोहा में हुई जो अच्छी रही। अमरीका ने स्पष्ट कर दिया कि वार्ता तालिबान को मान्यता देने की पहली कड़ी नहीं है, जो 15 अगस्त से सत्ता में आया है। विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने वार्ता को ठोस एवं पेशेवर करार दिया।
उन्होंने कहा कि अमरीकी पक्ष ने इस बात को दोहराया कि तालिबान के शब्दों पर नहीं बल्कि उसके कार्यों के माध्यम से उसका आकलन किया जाएगा। तालिबान के राजनीतिक प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा कि संगठन के विदेश मंत्री ने वार्ता के दौरान अमरीका को आश्वासन दिया कि चरमपंथियों द्वारा दूसरे देशों के खिलाफ हमला करने के लिए अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
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दूसरी ओर अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के साथ अंतरराष्ट्रीय समुदाय को जोड़ने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि 20 साल के गृहयुद्ध ने देश को तबाह कर दिया है। तालिबान सरकार अंतरराष्ट्रीय मंजूरी हासिल करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान को अलग-थलग करने और प्रतिबंध लगाने से बड़े पैमाने पर मानवीय संकट पैदा होगा।