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भारत और चीन को रूसी तेल आपूर्ति पर अमेरिका ने लगाए कड़े प्रतिबंध, अब कहां से तेल खरीदेगा भारत?

US ban on Russian Oil: ये प्रतिबंध इस बात पर निर्भर करेंगे कि क्या अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प (Donald Trump) प्रतिबंध को हटाते हैं और क्या चीन और भारत इन प्रतिबंधों को स्वीकार करते हैं?

नई दिल्लीJan 12, 2025 / 03:51 pm

Jyoti Sharma

US imposes tough sanctions on Russian oil supplies to India and China

US imposes tough sanctions on Russian oil supplies to India and China

US ban on Russian Oil: डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह से पहले ही अमेरिका ने चीन और भारत को लेकर एक बड़ा फैसला लिया है। अमेरिका ने भारत और चीन (Russia Oil Supply to India and China) को रूसी तेल की आपूर्ति पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं। अमेरिकी वित्त मंत्रालय ने बीते शुक्रवार (स्थानीय समय) को रूसी तेल उत्पादकों गैजप्रोम नेफ्ट और सर्गुटनेफ्टेगास के साथ-साथ रूसी तेल ले जाने वाले 183 जहाजों पर प्रतिबंध लगा दिए। कहा जा रहा है कि इन प्रतिबंधों का टारगेट रूस के यूक्रेन के साथ युद्ध (Russia Ukraine War) के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले राजस्व को कम करना है। 

अब कहां से तेल खरीदेगा भारत

अंतर्राष्ट्रीय समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के नए प्रतिबंधों पर व्यापारियों और विश्लेषकों का कहना है कि इन नए नियमों के चलते अब चीन और भारत की तेल रिफाइनरियां मिडिल ईस्ट, अफ्रीका और अमेरिका से ज्यादा तेल खरीदेंगी, जिससे कीमतें और माल ढुलाई की लागत बढ़ेगी। क्योंकि रूसी उत्पादकों और जहाजों पर नए अमेरिकी प्रतिबंधों से रूस के शीर्ष ग्राहकों को आपूर्ति में कमी आएगी। 
रूस पर अमेरिका समेत पश्चिमी देशों प्रतिबंधों और 2022 में G-7 देशों के लगाए गए मूल्य सीमा के चलते रुसी तेल का व्यापार यूरोप से एशिया की तरफ ट्रांसफर हो गया है। जिसके चलते कई टैंकरों का इस्तेमाल भारत और चीन को तेल भेजने के लिए किया गया है। कुछ टैंकरों ने ईरान से भी तेल भेजा है, जिस पर भी अमेरिका समेत कई देशों ने प्रतिबंध लगा हुए हैं।
रिपोर्ट में चीन के व्यापार सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि अमेरिका के नए प्रतिबंधों से रूसी तेल निर्यात को गंभीर नुकसान पहुंचेगा, जिससे चीन की स्वतंत्र रिफाइनर को आगे चलकर रिफाइनिंग उत्पादन में कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

सबसे ज्यादा तेल चीन और भारत के जाता था

केप्लर के प्रमुख माल विश्लेषक मैट राइट ने रिपोर्ट में बताया है कि अमेरिका के नए प्रतिबंधित जहाजों में 143 तेल टैंकर हैं, जिन्होंने पिछले साल 2024 में 530 मिलियन बैरल से ज्यादा रुसी कच्चे तेल का परिवहन किया था, ये देश के कुल समुद्री कच्चे तेल निर्यात का लगभग 42 प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि इनमें से लगभग 300 मिलियन बैरल चीन को भेजा गया, जबकि बाकी का बचा बड़ा हिस्सा भारत को भेजा गया था। 
राइट ने कहा कि “इन प्रतिबंधों से कुछ समय़ के लिए रूस से कच्चे तेल की आपूर्ति के लिए उपलब्ध जहाजों के बेड़े में काफी कमी आएगी, जिससे माल ढुलाई की दरें बढ़ जाएंगी।”

चीन और भारत स्वीकार करेंगे प्रतिबंध?

बता दें कि पिछले साल के पहले 11 महीनों में भारत का रुसी कच्चे तेल का आयात सालाना आधार पर 4.5 प्रतिशत बढ़कर 1.764 मिलियन BPD (बैरल प्रति दिन) हो गया। ये आंकड़ा भारत के कुल आयात का 36 प्रतिशत है। इसी दौरान पाइपलाइन आपूर्ति सहित चीन का आयात 2 प्रतिशत बढ़कर 99.09 मिलियन मीट्रिक टन (2.159 मिलियन BPD) हो गया था, जो उसके कुल आयात का 20 प्रतिशत है।
यहां ये भी गौर करने वाली बात है कि चीन का ज्यादातर आयात रूसी ESPO ब्लेंड तेल है। ये निर्धारित मूल्य से ज्यादा पर बेचा जाता है। जबकि भारत ज्यादातर यूराल तेल खरीदता है।
रिपोर्ट में वोर्टेक्सा की विश्लेषक एम्मा ली ने कहा कि अगर इन अमेरिकी प्रतिबंधों को सख्ती से लागू किया गया तो रूसी ESPO ब्लैंड कच्चे तेल का निर्यात रोक दिया जाएगा, लेकिन ये इस बात पर निर्भर करेगा कि क्या अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस प्रतिबंध को हटाते हैं और क्या चीन और भारत इन प्रतिबंधों को स्वीकार करते हैं?

मिडिल ईस्ट से खरीदेना होगा तेल

इन नए प्रतिबंधों के चलते चीन और भारत को मध्य पूर्व, अफ्रीका और अमेरिका से ज्यादा आपूर्ति लेने के लिए फिर से तेल बाजार में उतरना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि चीन और भारत की बढ़ती मांग के चलते हाल के महीनों में मध्य पूर्व, अफ्रीका और बाजील के ग्रेड के तेल की कीमतें पहले ही बढ़ चुकी हैं, क्योंकि रूस और ईरानी तेल की आपूर्ति कम हो गई है और ये महंगा हो गया है।
रिपोर्ट में एक भारतीय तेल रिफाइनरी के अधिकारी ने कहा कि मध्य पूर्वी ग्रेड के तेलों की कीमतें पहले से ही बढ़ रही हैं। अब अमेरिका के प्रतिबंध लगाने के बाद उनके पास मिडिल ईस्ट से तेल लेने के अलावा और कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है, उन्होंने ये भी कहा कि अब शायद उन्हें अमेरिका से भी तेल लेना पड़े। 
वहीं एक दूसरे भारतीय रिफाइनिंग सूत्र ने रिपोर्ट में बताया कि रूसी तेल बीमा कंपनियों पर अमेरिका के प्रतिबंध के चलते रूस को अपने कच्चे तेल की कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल से कम करनी पड़ेगी, ताकि रूस पश्चिमी बीमा और टैंकरों का इस्तेमाल जारी रख सके।

ट्रंप से पहले ही बाइडेन की कार्रवाई

एक और विश्लेषक ने कहा कि रुसी कच्चे तेल के मुख्य खरीदार, भारतीय रिफाइनरियां मध्य-पूर्व और डेटेड बैट से संबंधित अटलांटिक बेसिन कच्चे तेल के विकल्प तलाशने में जुट जाएंगी।  जिससे दुबई बैंचमार्क में मजबूती और बढ़ेगी, क्योंकि भारत को ओमान या मुरबन जैसे देशों के फरवरी लोडिंग कार्गो के लिए आक्रामक बोलियां देखने को मिलेंगी, जिससे बैट या दुबई स्प्रेड और भी सख्त हो जाएगा।
बता दें कि पिछले महीने, राष्ट्रपति जो बाइडेन ने आने वाले ट्रम्प प्रशासन से अपेक्षित सख्त कार्रवाई से पहले ही ईरानी कच्चे तेल से निपटने वाले ज्यादातर जहाजों को प्रतिबंधित कर दिया, जिसके चलते शेडोंग पोर्ट समूह ने पूर्वी चीनी प्रांत में अपने बंदरगाहों पर प्रतिबंधित टैंकरों पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके चलते ईरानी कच्चे तेल का मुख्य खरीदार चीन भी मिडिल ईस्ट के तेल की तरफ ही रुख करेगा और इस बात की सबसे ज्यादा संभावना है कि ये ट्रांस-माउंटेन पाइपलाइन (TMS) से कनाडाई कच्चे तेल की ज्यादा खरीद करेगा। 

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