कठिन समय
रिजवान साजन का जीवन सफर (rizwan sajan life story) प्रेरणादायक है। मुंबई के घाटकोपार के झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्र में जन्मे रिजवान ने गरीबी का सामना किया और कड़ी मेहनत के बल पर इस मुकाम तक पहुंचे। उनके पिता ने एक लॉटरी जीती थी, जिसके बाद परिवार ने एक छोटे से घर में शिफ्ट किया। रिजवान को पैदल स्कूल जाना पड़ता था और स्कूल की कैंटीन से भी कुछ नहीं खरीद सकते थे। इसी कठिन समय में उन्होंने ठान लिया कि वे पैसे कमाने पर ध्यान देंगे।
1000 रुपये उधार लेकर किताबें खरीदीं
रिजवान ने अपने पिता से 1000 रुपये उधार लेकर किताबें खरीदीं और उन्हें मार्केट रेट पर बेचा। इसके बाद उन्होंने दूध और अन्य सामान भी बेचना शुरू किया। 16 साल की उम्र में पिता के निधन के बाद उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इसके दो साल बाद, उनके अंकल ने कुवैत में नौकरी का प्रस्ताव दिया। मुंबई में 6000 रुपये महीना कमाने वाले रिजवान को कुवैत में 150 दीनार (वह समय करीब 18,000 रुपये) की सैलरी मिली, जो उनके लिए एक लॉटरी के समान थी। कुवैत में उन्होंने ट्रेनी सेल्समैन के रूप में काम शुरू किया और धीरे-धीरे उन्नति की। ट्रेडिंग फर्म की स्थापना की
उन्होंने सन 1993 में, एक ट्रेडिंग फर्म की स्थापना की और फिर 2014 में
रियल एस्टेट ( Real Estate)के क्षेत्र में कदम रखा। आज उनके डेन्यूब ग्रुप (Danube Group,) के पास 25 से ज्यादा लग्जरी रेजिडेंशियल प्रोजेक्ट्स हैं। उनके प्रोजेक्ट्स की अच्छी-खासी संख्या दुबई में भारतीय प्रॉपर्टी खरीदारों के बीच लोकप्रिय है। रिजवान का सालाना टर्नओवर 2 अरब डॉलर (लगभग 17,000 करोड़ रुपये) से ज्यादा है और वे हर महीने एक फीसदी पेमेंट प्लान में लग्जरी किफायती प्रोजेक्ट्स लॉन्च करने की योजना बना रहे हैं।
सालाना टर्नओवर 2 अरब डॉलर
रिजवान डेन्यूब ग्रुप (Danube Group) के फाउंडर और चेयरमैन हैं। यह कंट्रक्शन, होम डेकोर और रियल एस्टेट से बिजनेस से जुड़ा ग्रुप है। इनके ग्रुप की ब्रांच यूएई, ओमान, सऊदी अरब, कतर, भारत आदि देशों तक फैली हैं। कभी सेल्समैन का काम करने वाले रिजवान आज 20 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के मालिक हैं। फोर्ब्स के मुताबिक उनके बिजनेस का सालाना टर्नओवर 2 अरब डॉलर (करीब 17 हजार करोड़ रुपये) से ज्यादा है।
पिता ने लॉटरी जीती तो घर में रखा कदम
रिजवान मुंबई के घाटकोपार के स्लम एरिया में पैदा हुए थे। इनका बचपन भी मुंबई की झुग्गियों में बीता है। रिजवान ने फोर्ब्स को बताया कि उनके पिता ने एक लॉटरी जीती थी। इसके बाद वह एक छोटे घर में शिफ्ट हो गए। वह अपनी बहन के साथ कई किलोमीटर का रास्ता स्कूल तय करके पैदल जाते थे। उन्होंने इतने पैसे नहीं मिलते थे कि वह स्कूल की कैंटीन से कुछ खरीद कर खा सकें। उन्होंने उसी समय सोच लिया था कि वह पैसा कमाने पर ध्यान देंगे।
ऐसे पहुंचे कुवैत
पिता के निधन के करीब दो साल बाद उनके अंकल ने कुवैत में नौकरी का ऑफर दिया। मुंबई में जहां वह 6 हजार रुपये महीने कमा रहे थे, कुवैत में उनकी सैलरी 150 दीनार (उस समय करीब 18 हजार रुपये) थी। रिजवान बताते हैं कि यह उनके लिए लॉटरी लगने जैसा था। उन्होंने कुवैत में नौकरी शुरू कर दी। यहां वह ट्रेनी सेल्समैन थे। धीरे-धीरे पद और सैलरी दोनों बढ़ते गए। साल 1993 में उन्होंने एक ट्रेडिंग फर्म की स्थापना की। इसके बाद फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा।