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Russia-Ukraine War: रूस-यूक्रेन युद्ध पर पोलैंड के सेबेस्टियन डोमज़ल्स्की ने पुतिन को दी बड़ी नसीहत, युद्ध…

Russia-Ukraine War: रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पोलैंड के सेबेस्टियन डोमज़ल्स्की ने रूस-यूक्रेन युद्ध के जल्द समाधान की उम्मीद जताते हुए कहा कि पुतिन को यूक्रेन से अपने सैनिक वापस बुला लेना चाहिए और युद्धबंदियों को लौटा देना चाहिए।

नई दिल्लीJan 17, 2025 / 08:26 pm

M I Zahir

Russia ukraine War and polland

Russia-Ukraine War: रूस-यूक्रेन युद्ध पर पोलैंड से भारत के प्रभारी सेबेस्टियन डोमज़ल्स्की कहते हैं, “हम सभी उम्मीद करते हैं कि यह युद्ध जल्द ही समाप्त हो जाएगा क्योंकि इस समय युद्ध के मैदान में निर्दोष लोग मर रहे हैं। इसलिए यह एक बहुत ही गंभीर स्थिति है, और जितनी जल्दी संघर्ष समाप्त हो, उतना बेहतर है। युद्ध का एक बहुत ही सरल समाधान है: रूसी राष्ट्रपति पुतिन को यूक्रेन से अपने सैनिकों को वापस बुला लेना चाहिए और युद्धबंदियों को वापस कर देना चाहिए, लेकिन देखते हैं हम क्या हासिल कर सकते हैं।”डोमज़ल्स्की का यह बयान पोलैंड के दृष्टिकोण को दर्शाता है, जो युद्ध के समाप्ति के पक्ष में है और संघर्ष में दोनों पक्षों को समझौते की दिशा में कदम बढ़ाने की अपील करता है।

रूस और यूक्रेन के बीच क्या है मामला

रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष की जड़ें इतिहास, राजनीति, और क्षेत्रीय सुरक्षा से जुड़ी हैं। 24 फरवरी 2022 को रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के बाद यह संघर्ष और भी गंभीर हो गया, लेकिन इसके पीछे कई दशकों से चल रही तात्कालिक और ऐतिहासिक वजहें हैं। रूस और यूक्रेन के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध गहरे हैं। दोनों देशों का इतिहास एक साथ जुड़ा हुआ है, खासकर जब यूक्रेन का हिस्सा कभी रूस का हिस्सा था और सोवियत संघ का भी हिस्सा रहा। रूस यूक्रेन को अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा मानता है। वहीं, यूक्रेन में स्वतंत्रता और अपने राष्ट्रीय पहचान को लेकर लंबे समय से संघर्ष रहा है।

सोवियत संघ का विघटन : 1991 एक कारण

सोवियत संघ के टूटने के बाद, यूक्रेन 1991 में स्वतंत्र हो गया। इसके बाद से यूक्रेन को पश्चिमी देशों, खासकर यूरोपीय संघ और नाटो के साथ करीबियां बनाने की दिशा में कदम बढ़ाने की इच्छा रही है। रूस इसे अपनी क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानता है, क्योंकि उसे डर है कि नाटो का विस्तार रूस की सीमा तक हो सकता है।

सन 2014 का संकट और क्रिमिया का अधिग्रहण

यूक्रेन में सन 2014 में, यूरोपीय संघ के साथ समझौता करने के बाद, तत्कालीन यूक्रेनी राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच का विरोध हुआ और वह रूस समर्थक थे। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप यानुकोविच को हटाया गया, जिससे रूस को यह लगा कि यह पश्चिमी देशों की एक साजिश थी। उसी वर्ष रूस ने क्रीमिया क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और इसे रूस का हिस्सा घोषित किया, जिससे युद्ध की स्थिति और बिगड़ी। इसके बाद पूर्वी यूक्रेन के डोनेत्स्क और लुहान्स्क क्षेत्रों में प्रॉक्सी युद्ध शुरू हो गया, जहां रूस समर्थक विद्रोहियों ने यूक्रेनी सरकार के खिलाफ संघर्ष किया।

सन 2022 का हमला और युद्ध

रूस ने 24 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर पूर्ण आक्रमण शुरू किया, जिसे रूस ने “विशेष सैन्य अभियान” कहा, जबकि यूक्रेन और पश्चिमी देशों ने इसे एक युद्ध और आक्रमण माना। रूस का दावा था कि वह यूक्रेन को “नाज़ी” शासन से मुक्त करने और यूक्रेन के नाटो में शामिल होने को रोकने के लिए यह कार्रवाई कर रहा है। यूक्रेन और पश्चिमी देशों का कहना था कि यह रूस की विस्तारवादी नीति का हिस्सा है और यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता पर हमला है।

रूस और यूक्रेन में क्षेत्रीय और रणनीतिक मुद्दे

रूस के लिए यूक्रेन की रणनीतिक स्थिति महत्वपूर्ण है। यूक्रेन की पश्चिमी दिशा की ओर बढ़ती नाटो सदस्यता और यूरोपीय संघ के साथ संबंध रूस की सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में देखे जाते हैं। रूस यूक्रेन को अपनी “सुरक्षा क्षेत्र” के रूप में देखता है, जबकि यूक्रेन ने पश्चिमी देशों के साथ संबंध सुधारने की कोशिश की है। वहीं इस युद्ध के परिणामस्वरूप लाखों लोग प्रभावित हुए हैं। लाखों लोग अपने घरों से विस्थापित हो गए हैं, और युद्ध के कारण जानमाल की भारी हानि हुई है। यह युद्ध पूरी दुनिया में मानवाधिकार और मानवतावादी संकट के रूप में देखा जा रहा है।

रूस और यूक्रेन के युद्ध में भारत की भूमिका

रूस और यूक्रेन के युद्ध में भारत की भूमिका जटिल और संतुलित रही है। भारत ने हमेशा अंतरराष्ट्रीय विवादों में शांतिपूर्ण समाधान के पक्ष में अपनी स्थिति रखी है, और इसी कारण वह इस युद्ध में भी एक तटस्थ और संतुलित दृष्टिकोण अपनाए हुए है। भारत ने शुरुआत से ही इस युद्ध की कड़ी निंदा नहीं की, लेकिन संघर्ष की समाप्ति के लिए बातचीत और संवाद की आवश्यकता पर जोर दिया। भारत ने संयुक्त राष्ट्र सहित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर युद्ध को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की है, लेकिन उसने रूस और यूक्रेन दोनों के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखने की कोशिश की है। रूस के साथ भारत के ऐतिहासिक और रणनीतिक संबंध रहे हैं, खासकर रक्षा और ऊर्जा के क्षेत्र में। वहीं, यूक्रेन के साथ भी भारत के सकारात्मक कूटनीतिक और व्यापारिक संबंध हैं।

भारत ने शुरू से संतुलन रखा

भारत ने युद्ध की शुरुआत से ही इस मुद्दे पर अपनी नीति में संतुलन बनाए रखा है, और यह इस बात को प्रोत्साहित करता रहा है कि दोनों पक्ष आपसी वार्ता से समाधान निकालें। इसके अतिरिक्त, भारत ने युद्ध के कारण उत्पन्न मानवतावादी संकट के संदर्भ में भी सहायता प्रदान की है, जैसे कि यूक्रेनी नागरिकों के लिए चिकित्सा और खाद्य सहायता भेजना। भारत ने भी ऊर्जा के क्षेत्र में रूस से अपनी आपूर्ति बनाए रखने के लिए रूस से तेल खरीदने की नीति को जारी रखा है, क्योंकि रूस से ऊर्जा आयात भारत के लिए महत्वपूर्ण है। इस प्रकार, भारत ने युद्ध के प्रति अपने दृष्टिकोण में तटस्थता और संतुलन बनाए रखा है, और संघर्ष के समाधान के लिए कूटनीतिक प्रयासों को प्राथमिकता दी है।

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और बातचीत की आवश्यकता

बहरहाल पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को सैन्य, आर्थिक और मानवीय सहायता प्रदान की है। यूरोपीय संघ, अमेरिका और अन्य देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं। इसके विपरीत, रूस ने इस संघर्ष को पश्चिमी हस्तक्षेप के खिलाफ अपनी सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा के रूप में पेश किया है। रूस-यूक्रेन संघर्ष का मूल कारण जटिल ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और रणनीतिक मुद्दों से जुड़ा हुआ है। रूस और यूक्रेन दोनों के लिए यह एक अस्तित्ववादी संघर्ष बन चुका है, जिसमें क्षेत्रीय अखंडता, सुरक्षा, और राष्ट्रीय पहचान के मुद्दे शामिल हैं। इस युद्ध ने एक गंभीर मानवीय संकट को जन्म दिया है और इसके समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और बातचीत की आवश्यकता है।
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