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Lumpy Virus: भारत में दुनिया के किस हिस्से से आया लंपी वायरस, क्या हैं इसके लक्षण और बचाव, गाय का दूध पीने वालों को कितना खतरा?

इस समय राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश और पंजाब के दुधारू पशुओं में लंपी स्किन डिजीज फैली हुई है। जिनसे हजारों गायों की मौत हो गई है। गायों के शरीर में गांठें बन जा रही हैं। उन्हें बुखार हो रहा है। यह बुखार और गांठें उनके लिए जानलेवा साबित हो रही हैं। लेकिन सवाल ये है कि यह बीमारी आखिर कहां से भारत में आई। इससे पीड़ित सभी पशुओं की मौत हो रही है या फिर कुछ ठीक भी हो रहे…और लंपी पीड़ित गाय का दूध है कितना सुरक्षित…

Sep 13, 2022 / 10:53 am

Swatantra Jain

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Lumpy Virus से बचाने के लिए गायों को लगाई जा रही है बकरियों वाली वैक्सीन,Lumpy Virus से बचाने के लिए गायों को लगाई जा रही है बकरियों वाली वैक्सीन,

सबसे पहली बात यह कि, लंपी स्किन बीमारी एक वायरल रोग है। लंपी स्कीन डिजीज जिस वायरस के कारण होती है, उसका नाम Capripoxvirus है। ये बीमारी गायों और भैसों को होती है। ये वायरस गोटपॉक्स और शिपपॉक्स या पॉक्स फैमिली का है। लंपी वायरस मवेशियों में मच्छर या खून चूसने वाले कीड़ों के जरिए फैलता है। लंपी स्किन बीमारी मूल रूप से अफ्रीकी बीमारी है और अधिकांश अफ्रीकी देशों में है। माना जाता है कि इस बीमारी की शुरुआत जाम्बिया देश में हुई थी, जहां से यह दक्षिण अफ्रीका में फैल गई। यह बात 1929 की है। साल 2012 के बाद से यह तेजी से फैली है, हालांकि हाल ही में रिपोर्ट किए गए मामले मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व, यूरोप, रूस, कजाकिस्तान, बांग्लादेश (2019) चीन (2019), भूटान (2020), नेपाल (2020) और भारत (अगस्त, 2021) में पाए गए हैं।
संकर नस्ल के गौवंश की मृत्युदर अधिक
लंपी स्किन बीमारी मुख्य रूप से गौवंश को प्रभावित करती है। देसी गौवंश की तुलना में संकर नस्ल के गौवंश में लंपी स्किन बीमारी के कारण मृत्यु दर अधिक है। इस बीमारी से पशुओं में मृत्यु दर 1 से 5 प्रतिशत तक है। रोग के लक्षणों में बुखार, दूध में कमी, त्वचा पर गांठें, नाक और आंखों से स्राव आदि शामिल हैं। रोग के प्रसार का मुख्य कारण मच्छर, मक्खी और परजीवी जैसे जीव हैं। इसके अतिरिक्त, इस बीमारी का प्रसार संक्रमित पशु के नाक से स्राव, दूषित फीड और पानी से भी हो सकता है।
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बछड़ों को कैसे पिलाएं दूध
वायरल बीमारी होने के कारण प्रभावित पशुओं का इलाज केवल लक्षणों के आधार पर किया जाता है। बीमारी की शुरुआत में ही इलाज मिलने पर इस रोग से ग्रस्त पशु 2-3 दिन के अन्तराल में बिल्कुल स्वस्थ हो जाता है। किसानों को मक्खियों और मच्छरों को नियंत्रित करने की सलाह दी जा रही है, जो बीमारी फैलने का प्रमुख कारण है। प्रभावित जानवरों को अन्य जानवरों से अलग करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। बछड़ों को संक्रमित मां का दूध उबालने के बाद बोतल के जरिए ही पिलाया जाना चाहिए।
दूध, गोमूत्र और गोबर पर भी असर

लंपी वायरस का संक्रमण गौवंश की जान के लिए खतरनाक है। इसके साथ ही गाय का दूध और गोमूत्र और गोबर पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है। गाय के दूध में मौजूद वायरस को खत्म भी किया जा सकता है। इसके लिए दूध को लंबे समय तक उबालना जरूरी होगा या फिर पाश्चराइजेशन के जरिए इस्तेमाल किए जाने वाला दूध किसी भी तरीके से नुकसानदायक नहीं होता है, क्योंकि इससे वायरस पूरी तरीके से नष्ट हो जाता है। इंसान के लिए इसमें कोई भी हानिकारक तत्व नहीं बचते हैं, लेकिन अगर ये दूध गाय का बच्चा सेवन करे तो ये उसके लिए हानिकारक हो सकता है। ऐसे में मवेशी के बच्चे को अलग कर देना चाहिए।
मवेशी के गर्भाशय पर भी पड़ता है लंपी वायरस का असर

दूसरी तरफ चुकी लंपी वायरस की वजह से गाय की मृत्युदर कम होती है लेकिन इसका सीधा असर उसके दूध के उत्पादन और उसके गर्भाशय पर पड़ता है। एक्सपर्ट के मुताबिक, बीमारी से दूध के उत्पादन में असर होता है जो 50 फीसदी तक कम हो जाता है। इसका सीधा असर दूध के उत्पादन में और मवेशी के गर्भाशय में भी पड़ता है जो गाय की प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट भी कर देता है।

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संक्रमित गाय की लार और रक्त कर सकता बीमार

दूसरी तरफ लोगों के मन में यह सवाल है कि क्या लंपी वायरस से ग्रसित गाय के गोमूत्र और गोबर में वायरस के तत्व नहीं पाए जाते? इस पर एक्सपर्ट का मानना है कि वायरस का कोई भी असर नहीं दिखाई देता है। साथ ही गौमूत्र या गोबर का काम करने वालों या इस्तेमाल करने पर कोई हानिकारक असर नहीं है, लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि वह इस वायरस का करियर ना बनें, क्योंकि अगर गाय की लार या उसका संक्रमित रक्त दूसरे जानवर को लग जाए तो संक्रमण फैल सकता है।
लंपी वायरस से इंसानों को खतरा नहीं

लंपी वायरस से इंसानों को कोई खतरा नहीं, यह पशु से पशुओं में फैलता है। ऐसे में जानवर की लार और मच्छर के काटने से यह फैलता है। एक्सपर्ट का मानना है कि अगर जानवर की चखतों को नीम या हल्दी और घी का पेस्ट लगाया जाए तो इस बीमारी से ग्रस्त मवेशी 1 हफ्ते से 10 दिन में ठीक हो सकता है, लेकिन इससे निजात पाने का सबसे अहम तरीका वैक्सीनेशन है, जिसके जरिए इसके संक्रमण को तेजी से रोका जा सकता है।
संक्रमित जानवरों को पूरी तरह अलग रखना जरूरी

लंपी वायरस के संक्रमण को रोकने के संबंध में एक्सपर्ट मानते हैं कि इसका सिर्फ और कारगर उपाय संक्रमित जानवर को बाकी जानवरों से अलग करना ही हो सकता है। हालांकि संक्रमण की रफ्तार तेज है लेकिन मवेशी की मृत्यु की संभावना कम होती है। ऐसे में किसान और गौशाला कर्मियों को सबसे पहले संक्रमित गाय को बाकी जानवरों से अलग कर उन्हें उपचार देने की जरूरत है। वरना ये संक्रमण तेजी से दूसरे जानवरों में फैल सकता है।
राजस्थान में 29 लाख 24 हजार 157 गायें संक्रमित

फिलहाल, गायों के लिए प्राण घातक साबित हो रही इस बीमारी से अब तक राजस्थान में 29 लाख 24 हजार 157 गायें संक्रमित हुईं हैं, जिनमें से 50 हजार 366 गायों की मौत हो चुकी है। राजस्थान की गहलोत सरकार हो या केंद्र सरकार, शुरुआत में इस बीमारी पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। इसको लेकर अब सोशल मीडिया में सवाल उठाए जा रहे हैं। सोशल मीडिया में किस तरह की चर्चा चल रही है, इसके कुछ ट्वीट हमने ऊपर शेयर भी किए हैं।
चुनाव नहीं, इसलिए गायों को मरने के लिए छोड़ दिया

नतीजा ये हुआ कि जो गाय देश की राजनीति में सबसे ज्यादा प्रभाव रखती हैं और गाय के नाम पर देश में सरकार बनती है, आज चुनाव नहीं है तो इन गायों को मरने के लिए छोड़ दिया गया है। इस कारण बेजुबान गायों में तेजी से फैल रहे लंपी वायरस ने दो महीने में ही 50 हजार से ज्यादा गायों के प्राण लील लिए। गायों की लगातार हो रही मौत को रोकने के लिए विभाग अब केवल वैक्सीनेशन पर निर्भर है। वहीं, 730 पशुधन सहायक लगाकर इस बीमारी को रोकने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन प्रदेश की 11,00,000 लंपी संक्रमित गायों को कैसे बचाया जाए, यह अपने आप में बड़ी चुनौती बनी हुई है।
लंपी वायरस के लक्षण…
हल्का बुखार आना, शरीर पर दाने निकलना, दाने घाव में बदलना, जानवर की नाक बहना, मुंह से लार आना और दूध देना कम हो जाता है।

राजस्थान सरकार की ओर से लगातार यह दावे किए जा रहे हैं कि अब इस बीमारी के संक्रमण पर धीरे-धीरे काबू पाया जा रहा है। 10 दिन में इस बीमारी पर पूरा काबू हो जाएगा। लेकिन हकीकत यह है कि न तो ये 10 दिन ही पूरे हो रहे हैं और न ही गायों की मौत का सिलसिला रुक रहा है। बीते दो महीने के बीच में कुछ दिन ऐसे आए थे, जब लंपी वायरस से मरने वाले गायों की संख्या 2000 या उससे ऊपर रही।
उसके बाद से लगातार यह संख्या 1200 से 1400 बनी हुई है, जो अब भी जारी है। यानी कि रोजाना इस बीमारी से 1200 से 1400 गायों की मौत हो रही है। विभाग केवल यह कहकर अपनी पीठ थपथपा रहा है कि उसने 8 लाख 55 हजार 171 गायों को वैक्सीनेटेड कर दिया है। लेकिन सर्वविदित है कि वैक्सीन केवल उन गायों पर ही कारगर है, जो इस बीमारी से संक्रमित नहीं हुई हैं. ऐसे में प्रदेश में आज भी 11 लाख 34 हजार 709 गायें लंपी डिजीज से संक्रमित हैं।

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