आपको ये सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन, ये सच है कि एक वक्त ऐसा था जब ईरान और इजरायल (Iran Israel Relation) एक थे, दोनों देशों के बीच एक अच्छे संबंध की शुरुआत हुई थी लेकिन फिर आज ये दोनों देश एक दूसरे के जानी-दुश्मन कैसे बन गए? इसका जवाब जानने के लिए आपको थोड़ा इतिहास में जाना पड़ेगा।
बेहद अच्छे दोस्त थे ईरान और इजरायल
ईरान और इजरायल हमेशा से दुश्मन नहीं थे। 1920-1979 तक दोनों देशों के बीच काफी अच्छे संबंध थे। खासकर 1940 और 1970 के दशक के दौरान दोनों में काफी करीबियां थीं। उस समय दोनों देशों ने कई क्षेत्रों में सहयोग किया, जिसमें तेल व्यापार और सैन्य समझौते शामिल थे। इज़राइल के लिए ईरान एक अहम साझेदार था, क्योंकि ईरान ने इज़राइल को तेल की आपूर्ति की थी। सिर्फ इतना ही नहीं, दोनों देश खुफिया जानकारी भी एक-दूसरे से साझा करते थे। 1940 के दशक में जब शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी ईरान के शासक बने, तो ईरान और इज़राइल के बीच कूटनीतिक और आर्थिक सहयोग शुरू होन की नींव पड़ी। ये सहयोग 1948 में इज़राइल की स्थापना के बाद शुरू हुआ, जब ईरान ने इज़राइल को de facto मान्यता (दूसरे देश को औपचारिक मान्यता देना, जो वैध ना हो, लेकिन उसके साथ व्यापार और दूसरे मामलों में सहयोग करता हो) दी थी। हालांकि इसे आधिकारिक मान्यता नहीं दी गई थी।
ईरान में आई क्रांति और सब खत्म हो गया
फिर वक्त आया 1979 का, जब ईरान में क्रांति आ गई थी, तब ईरान में शाह सरकार को उखाड़ फेंक दिया गया था और आयतुल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में इस्लामिक रिपब्लिक की स्थापना हो गई थी, तो ईरान और इज़राइल के बीच संबंध पूरी तरह से बदल गए। नई ईरानी सरकार ने इज़राइल को ‘शैतानी देश’ घोषित कर दिया था और उसके साथ सभी तरह के संबंध खत्म कर लिए थे। इसके बाद से दोनों देशों के बीच शत्रुता बढ़ती गई, जो आज भी जारी है।
ईरान ने क्यों दिया था इजरायल को ‘शैतानी राज्य’ का दर्जा
दरअसल आयतुल्लाह खुमैनी ईरान में शिया इस्लाम की मान्यताओं पर आधारित एक सख्त इस्लामी शासन स्थापित करना चाहता था। वो ये मानता था कि इज़राइल ने फिलिस्तीनी मुसलमानों के साथ अन्याय किया है, और इजरायल को अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों का एजेंट मानता था। सिर्फ इतना ही नहीं खुमैनी ये भी कहता था कि इजरायल, मुस्लिम धरती पर बसा हुआ देश है, जिसे वो अल कुद्स कहता था। खुमैनी का मानना था कि इज़राइल इस्लामिक दुनिया के खिलाफ एक पश्चिमी साजिश का हिस्सा है, जो मुस्लिम दुनिया को विभाजित और कमजोर करने की कोशिश कर रहा था। इसलिए खुमैनी ने इजरायल को शैतानी राज्य घोषित कर दिया था।
इजरायल से ईरान की कैसे बढ़ती गई दुश्मनी
अल खुमैनी के बाद के बाद दोनों देशों में वैचारिक मतभेद शुरू हो गए। इजरायल को शैतानी देश घोषित करना इजरायल को जरा भी गवारा नहीं हुआ। फिर वक्त आया 1980 का जब ईरान के दुश्मन इराक से संबंध बेहद खराब होने लगे। हालात युद्ध तक आ गए थे। इराक से लड़ने के लिए अमेरिका ने ईरान और इजरायल को एक होने को कहा, तब इजरायल ने ईरान का साथ देने की कोशिश की। यहां तक कि इराकी परमाणु कार्यक्रम को कमजोर करने के लिए 1981 में इजरायल ने इराक के ओसिराक रिएक्टर पर हमला भी किया। ईरान ने इसे इजरायल की मदद ना समझकर इजरायल की कोई नई चाल समझी, जो इजरायल को बेहद बुरी लगी। तब से दोनों देशों के बीच संबंध और खराब हो गए। तब से इज़राइल और ईरान ने एक दूसरे को क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरे के रूप में देखना शुरू कर दिया।
हिजबुल्लाह को ईरान का समर्थन भी बड़ा कारण
1980 के दशक में ईरान ने लेबनान में हिज़्बुल्लाह नाम के शिया उग्रवादी संगठन को समर्थन देना शुरू कर दिया था। क्योंकि हिजबुल्लाह इज़राइल के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाला एक प्रमुख संगठन है और उसने इज़राइल पर कई हमले किए थे। जब इजरायल को ये पता चला कि हिजबुल्लाह को सेना और वित्तीय मदद ईरान से मिल रही है, तो ईरान और इजरायल के बीच तनाव और ज्यादा बढ़ गया।